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भैरव के 52 रूपों में किसी भी रूप या पूर्ण 52 भैरव की साधना हर एक तंत्र साधक

भैरव के 52 रूपों में किसी भी रूप या पूर्ण 52 भैरव की साधना हर एक तंत्र साधक

….भैरव के 52 रूपों में किसी भी रूप या पूर्ण 52 भैरव की साधना हर एक तंत्र साधक को करने ही चाहिए।

हर एक साधना की एक विशिष्ट दीक्षा पद्दति होती है हर एक साधना की अलग सिद्धि सूत्र जो केवल और मात्र गुरुमुख से ही प्राप्त की जा सकती है। पर क्या अगर किसी को सद्गुरु प्राप्त ना हुवा हो तो वह भैरव उपासना नहीं कर सकता??? कर सकता है पर स्तोत्र के रूप में।

आगे जो स्तोत्र दिया जा रहा है यह स्तोत्र साधक की हर इच्छा पूर्ण करने में सक्षम है। चाहे कोही भी हो। हर इच्छा अवश्य पूर्ण होती ही है।

और हर एक व्यक्ति को इस स्तोत्र का अनुष्ठान करने ही चाहिए।

सबसे पहले साधक श्री भैरव नाथ को या भगवान् महादेव को अपने गुरु रूप में स्वीकार करें।

इस स्तोत्र पाठ की विधान अत्यंत सरल है। साधक मंगलवार अपने सामने मात्र “बटुक भैरव यन्त्र ” स्थापित कर यन्त्र की पंचोपचार पूजन कर इस स्तोत्र की नित्य पाठ करें(एक बार में कम-से-कम 51 आवश्यक है।)। यह स्तोत्र 11000 पाठ से सिद्ध होती है। इसके बाद स्तोत्र की मात्र 1 पाठ से उच्चाटन और स्तम्भन जैसे कार्य किये जा सकते हैं।

नैवेद्य पूजन के बाद किसी कुत्ते को खिल दें।

विनियोग

अस्य श्री बटुक भैरवनामाष्टशतकाऽपदुद्धारणस्तोत्रमंत्रस्य वृहदारण्यक ऋषिः श्री बटुक भैरवो देवता, अनुष्टुप छन्दः ह्रीं बीजं बटुकयैति शक्तिः प्रणव कीलकम अभीष्टसिद्धयर्थे विनियोगः

करन्यास

ह्रां वां अंगुष्ठाभ्यां नमः

ह्रीं वीं तर्जनीभ्याम नमः

ह्रूं वूं मध्यमाभ्याम नमः

ह्रैं वैं अनामिकाभ्याम नमः

ह्रों वों कनिष्ठिकाभ्याम नमः

ह्रः वः करतलकरपृष्ठाभ्याम नमः

[ करन्यासवत हृद्यादी न्यास ]

नैवेद्य

ऎह्ये हि देवी पुत्र बटुकनाथ कपिलजटाभारभास्वर त्रिनेत्र ज्वालामुख सर्व विघ्नान नाशय नाशय सर्वोपचार सहित बलिं गृहण गृहण स्वाहा

ॐ भैरवो भूतनाथश्च भूतात्मा भूतभावन।

क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्॥१॥

श्मशान वासी मांसाशी खर्पराशी स्मरांतकः।

रक्तपः पानपः सिद्धः सिद्धिदः सिद्धिसेवित॥२॥

कंकालः कालशमनः कलाकाष्टातनु कविः।

त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च तथा पिंगल-लोचनः॥३॥

शूलपाणिः खङ्गपाणिः कंकाली धूम्रलोचनः।

अभीरूर भैरवीनाथो भूतपो योगिनीपतिः॥४॥

धनदो अधनहारी च धनवान् प्रतिभानवान्।

नागहारो नागपाशो व्योमकेशः कपालभृत्॥५॥

कालः कपालमाली च कमनीयः कलानिधिः।

त्रिलोचनो ज्वलन्नेत्रः त्रिशिखा च त्रिलोकपः ॥६॥

त्रिनेत्र तनयो डिम्भशान्तः शान्तजनप्रियः।

बटुको बहुवेषश्च खट्वांग वरधारकः॥७॥

भूताध्यक्षः पशुपतिः भिक्षुकः परिचारकः।

धूर्तो दिगम्बरः शूरो हरिणः पांडुलोचनः॥८॥

प्रशांतः शांतिदः शुद्धः शंकर-प्रियबांधवः।

अष्टमूर्तिः निधीशश्च ज्ञान-चक्षुः तपोमयः॥९॥

अष्टाधारः षडाधारः सर्पयुक्तः शिखिसखः।

भूधरो भुधराधीशो भूपतिर भूधरात्मजः॥१०॥

कंकालधारी मुण्डी च नागयज्ञोपवीतिकः ।

जृम्भणो मोहनः स्तम्भो मारणः क्षोभणस्तथा ॥११॥

शुद्धनीलांजन प्रख्यो दैत्यहा मुण्डभूषितः।

बलिभुग् बलिभंगः वैद्यवीर नाथी पराक्रमः ॥१२॥

सर्वापित्तारणो दुर्गे दुष्टभूत-निषेवितः।

कामी कलानिधि कान्तः कामिनी वशकृद्वशी॥१३॥

सर्व सिद्धि परदों वैद्यः प्रभुर्विष्णुरितीव हि

अष्टोतर शतं नाम्नां भैरवस्य महात्मनः ॥१४॥

मयाते कथितं देवी रहस्य सर्व कामिकं

यः इदं पठत स्तोत्रं नामाष्टशतमुत्तमम् ॥१५॥

—–इति

हर साधना से पूर्व भैरव साधना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है ….. पर कैसे करें भैरवनाथ की स्तुति??

यहाँ नीचे भैरव की सबसे प्रभावकारी स्तोत्रों में से एक स्तोत्र दे रहा हूँ जिससे भैरव तांडव स्तोत्र का भी संज्ञा दिया गया है।

बस पूर्ण भाव विभोर होकर स्तुति करें और देखें भैरव नाथ की चमत्कार।

यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं

सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं

दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं

पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥

रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं

घं घं घं घोर घोसं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं

कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं

दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥

लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं

धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं

रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं

नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥

वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं

खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं

चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं

मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं

क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सांदिप्यमानं

हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं

बं बं बं बाललिलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥

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