शिव सिद्धि सर्व रक्षाकारक प्रासाद कवच | shiv siddhi sarv rakshaakaarak praasaad kavach
विनियोग: ॐ अस्य श्रीसदा -शिव -प्रासाद -मन्त्र -कवचस्य श्रीवामदेव ऋषिः , पंक्ति छंद, श्रीसदा-शिव देवता, अभीष्ट -सिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः |
ऋषादि न्यास: श्रीवामदेव -ऋषये नमः शिरसी | पंक्तिश्छंद से नमः मुखे | श्रीसदा -शिव -देवतायै नमः ह्रदि | अभीष्ट -सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे |
ॐ शिरो मे सर्वदा पातु प्रासादाख्यः सदा-शिवः |
षडक्षर-स्वरूपो मे , वदनं तु महेश्वरः || १ ||
अष्टाक्षरः शक्ति -रूद्रश्चक्षुषी मे सदावतु |
पंचाक्षरात्मा भगवान् भुजौ मे परी-रक्षतु || २ ||
मृत्युन्जयस्त्रि -बीजात्मा , आयु रक्षतु मे सदा |
वट-मूल - समासीनो , दक्षिणा -मूर्त्तिरव्ययः || ३ ||
सदा मां सर्वतः पातु , षट -त्रिंशार्ण - स्वरुप -धृक |
द्वा -विंशार्णात्मको रुद्रः, कुक्षी मे परी-रक्षतु || ४ ||
त्रि - वर्णात्म नील - कंठः , कंठं रक्षतु सर्वदा |
चिंता -मणिर्बीज-रूपो, अर्द्व -नारीश्वरो हरः || ५ ||
सदा रक्षतु मे गुह्यं, सर्व - सम्पत -प्रदायकः |
एकाक्षर -स्वरूपात्मा , कूट - रुपी महेश्वरः || ६ ||
मार्तंड -भैरवो नित्यं, पादौ मे परी-रक्षतु |
तुम्बुराख्यो महा-बीज-स्वरूपस्त्रीपुरान्तकः || ७ ||
सदा मां रण-भूमौ च, रक्षतु त्रि-दशाधिपः |
उर्ध्व -मूर्द्वानमीशानो, मां रक्षतु सर्वदा || ८ ||
दक्षिणास्यां तत्पुरुषोsव्यान्मे गिरी-विनायकः |
अघोराख्यो महा-देवः, पूर्वस्यां परी-रक्षतु || ९ ||
वामदेवः पश्विमस्यां, सदा मे परी-रक्षतु |
उत्तरस्यां सदा पातु, सद्योजात-स्वरुप-धृक || १० ||
शिव सिद्धि सर्व रक्षाकारक प्रासाद कवच सभी नए और पुराने साधको के लिए ,,आप सभी पूर्ण श्रद्धा के साथ इस कवच का पाठ करे,,और भगवन शिव कि कृपा प्राप्त करे ,,,,,निखिल वन्दे जगत गुरु
नए नए स्त्रोत्र मै इस लिए देता हू,,ताकि जो भी अध्यात्म में नए है वो नहीं जानते की मंत्र जप क्या है ?? साधना क्या है सिद्धि क्या है ,,वो इन स्त्रोत्रो का लाभ उठाकर उस परमात्मा की कृपा प्राप्त करे,,मै मानता हू की अगर पूजा करनी है तो फिर तंत्र से करे ,,क्यों की गुरुदेव हमेशा से बोलते है ,,की तंत्र ही जीवन है