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Shukra Yantra Mala, शुक्र देव मंत्र

Shukra Yantra Mala, शुक्र देव मंत्र

शुक्र देव मंत्र, Shukra Yantra Mala

Shukra Yantra Mala


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धर्म पथ पर या मोक्ष के मार्ग में जो सबसे बड़ा व्यवधान होता है वो होता है वह होता काम भाव का अति आवेग , वो भी साधना के दिनों में और हद तो तब होती है जब वो आवेग साधनात्मक इष्ट , समबन्धित देवी देवता और यहाँ तक की गुरु के प्रति भी हो जाता जाता है . और यही पर साधक के बस में कुछ नहीं होता. जहाँ जीवन में आर्थिक या अध्यात्मिक उन्नति का परिचायक शनि होता है , वहीं पर उसकी दमित काम भावना, कुत्सित या सुप्त विचार, साधनाओं में व्यवधान के रूप में कामुक चिंतन, स्वप्न दोष, आसन पर बैठने की क्षमता में न्यूनता,चित्त की बैचेनी और आसन स्खलन आदि का प्रतिनिधित्व शुक्र ग्रह करता है , शुक्र स्त्री ग्रह है, सौंदर्य और प्रेम का प्रतीक है पर तभी तक जब तक उसकी शक्ति संतुलित है . परन्तु ९७% व्यक्तियों की कुंडली में ऐसा नहीं होता है . वे शनि,मंगल अथवा राहू केतु की शक्ति को तो मानते हैं और उसका समाधान करने का भी प्रयत्न करते हैं पर शुक्र को तो गिनती में ही नहीं रखते , अरे बारहवाँ भाव मोक्ष का तो है पर यदि उसमे शुक्र की पूर्ण संतुलित अंशों में निरापद उपस्थिति हो जाये तो ये सोने में सुहागा ही होगा. अब हर कुंडली में तो ये नहीं हो सकता परन्तु यदि शुक्र को प्रयासपूर्वक व्यक्ति संतुलित कर ले तो निश्चय व्यक्ति को इसके सकारात्मक परिणाम मिलते ही हैं. यथा साधना में पूर्ण सफलता,प्रबल आकर्षण क्षमता,ऐश्वर्य, विशुद्ध प्रेम की प्राप्ति और सबसे बड़ा काम भाव पर विजय,यदि सामान्य रूप से एक आम व्यक्ति भी इस साधना को संपन्न कर लेता है तो उसे भी अद्विय्तीय सुंदरता,पूर्ण ऐश्वर्य और विशुद्ध प्रेम की प्राप्ति होती ही है.आज तुम्हारा शुक्र अनुकूल हो पर विगत किसी जीवन में तुम उसकी प्रतिकूलता से पीड़ित रहे हो तब ऐसी दशा में उसका साधनात्मक परिहार कर लेना कही ज्यादा बेहतर रहता है . ऐसे में वो तुम्हारी साधना में बाधा भी नहीं बनेगा उलटे तुम्हे अनुकूलता देकर तुम्हारे अभीष्ट को भी दिलवाएगा. प्रत्येक साधक को अपने जीवन में इस साधना को एक बार अवश्य कर लेना चाहिए और हो सके तो अपने साधना जीवन के प्रारंभ में ही ऐसा कर लेने पर कही ज्यादा अनुकूलता होती है . और इस साधना को कोई भी कर सकता है , ये विचार करने की कोई आवशयकता नहीं की हमारी कुंडली में शुक्र या अन्य ग्रहों की क्या स्थिति है.

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शुक्र देव मंत्र साधना

अनिवार्य सामग्री-सफ़ेद आसन व वस्त्र(साधक सफ़ेद धोती और सध्काएं सफ़ेद साडी का प्रयोग करे), ताम्र पत्र या रजत पत्र पर उत्कीर्ण चैतन्य और पूर्ण प्राण प्रतिष्ठित शुक्र यंत्र व मालासफ़ेद हकीक की माला, घृत दीपक,अक्षत , सफ़ेद पुष्प(मोगरा मिल सके तो अतिउत्तम),खीर आदि.
प्रातः काल स्नान कर सफ़ेद धोती धारण कर पूजा स्थल में बैठे और आग्नेय (दक्षिण-पूर्व) दिशा की और मुह कर बैठे , पूर्व की तरफ भी किया जा सकता है. सामने बाजोट पर सफ़ेद रेशमी वस्त्र बिछा ले और उस पर चावलों की ढेरी बनाकर उस पर शुक्र यंत्र की स्थापना कर ले . हाथ में जल लेकर शुक्र साधना में पूर्ण सफलता प्राप्ति के लिए सदगुरुदेव और भगवान गणपति से प्रार्थना करे. तत्पश्चात गुरु मंत्र की ४ और गणपति मन्त्र की १ माला संपन्न करे , इसके बाद शुक्र का ध्यान निम्न मन्त्र से करे. और इस ध्यान मन्त्र को ५ बार उच्चारित करना है.
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं ब्रहस्पतिम्.
सर्वशास्त्र प्रवक्तारम् भार्गवं प्रणमाम्यहम् ..
इसके बाद उस यंत्र को जल से स्नान करवा ले और अक्षत की ढेरी पर स्थापित कर उसका अक्षत,चन्दन की धूपबत्ती, घृत दीप, पुष्प, नैवेद्य आदि से पूजन करे.पूजन करते हुए
ॐ शुं शुक्राय नमः अक्षत समर्पयामी ,
ॐ शुं शुक्राय नमः पुष्पं समर्पयामी , धूपं समर्पयामी ….आदि कहते हुए पूजन करे. तत्पश्चात निम्न मन्त्र की ५१ माला जप करे और ये क्रम १४ दिनों तक करना है जिस्सके साधना में पूर्ण सफलता की प्राप्ति हो और सभी लाभ मिल सके.

Mantra – मन्त्र- ॐ स्त्रीम् श्रीं शुक्राय नमः Shukra Yantra Mala


और प्रतिदिन जप के बाद मन्त्र के अंत में ‘स्वाहा’ लगाकर उपरोक्त मन्त्र के द्वारा सफ़ेद चन्दन बुरे की २१ आहुतियाँ डाले , ये नित्य प्रति का कर्म है ,जिसे १४ दिनों तक करना ही है ,इसके पश्चात जप पुनः एक माला गुरु मन्त्र की करके जप समर्पण कर आसन से उठ जाये.
अपने २४ वर्षों के साधनात्मक जीवन में मैं हजारों गुरुभाइयों और साधकों से मिला हूँ और उनमे से बहुतेरे को मैंने इन्ही समस्या से पीड़ित पाया है .

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