सियार सिंगी, गीदढ़ सिंगी, जम्बुकी
प्राणी विशेषज्ञों की मान्यता के अनुसार सियारों के सींग नहीं होते. पर यह प्रकृति का आश्चर्य ही है कि जब वह गर्दन झुका कर हुआं हुआं करता है तब उसके सर पर एक छोटा सा सींग निकल आता है. यह करीब १ या २ इंच के लगभग होता है. इसके चारों ओर भूरे बाल होते हैं. कहते हैं कि जब यह हुआं-हुआं करता है तब ये सींग बाहर उभर आता है उस समय यह प्राप्त किया जाता है. इसी को सियार सिंगी कहते हैं. इसकी पहचान यह है कि यह हड्डी के समान होता है तथा ऊपरी भाग एकदम नुकीला और भूरे बालों से ढका रहता है. इसको कुछ अन्य वस्तुएं जैसे उड़द की दाल, कपूर और लोंग इत्यादि के साथ सिन्दूर में रखा जाता है. सिन्दूर पाकर इसके बाल बढ़ने लगते हैं यही इसकी असली पहचान है. कहा जाता है कि इसके बाल कभी काटने नहीं चाहिए क्योंकि बाल काटने से इनका तांत्रिक प्रभाव समाप्त हो जाता है. तंत्र की विभिन्न साधनाओं में इसका बहुत महत्व है. यह रक्षा कार्यों, मुकदमे में जीत, शत्रुओं और दुर्घटनाओं से बचाव और धन संपत्ति प्राप्ति में सफलता दायक मानी जाती है. इसमें माँ चामुण्डा का वास माना गया है. इसको विधिवत रूप से अपने पास रखने वाला व्यक्ति कभी भी जीवन में उसे चोट तो क्या, शरीर में खरोंच भी नहीं आ सकती. जीवन रक्षक के रूप में इसको अनमोल कवच माना जाता है. तंत्र द्वारा इस दुर्लभ व रहस्यमय वस्तु की साधना कर साधक लोग अपनी जांघ चीर कर इसे रख कर उपर से टाँके लगा देते हैं. उसके प्रभाव से साधक दुर्गम स्थानों पर जाकर ख़तरनाक जगहों पर निवास कर निश्चिंत होकर साधना करते हैं. सामान्य व्यक्तियों के लिए अपने पास चांदी की डिब्बी में सिन्दूर के साथ रखना ही पर्याप्त है. इस डिब्बी में स्त्रियों का लगाना वर्जित बताया गया है. डिब्बी में हत्था जोड़ी के साथ रखने से इसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है. ऐसे व्यक्ति पर किसी व्यक्ति के प्रहार का निशाना भी चूक जाता है. धारक व्यक्ति के सामने आने वाले प्राणी व्यक्ति का स्तम्भन हो जाता है.