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एकलव्य की कहानी, एकलव्य द्रोणाचार्य शिष्य,एकलव्य और द्रोणाचार्य की कहानी, एकलव्य की मृत्यु, Story of Eklavya Drona shisya

एकलव्य की कहानी, एकलव्य द्रोणाचार्य शिष्य,एकलव्य और द्रोणाचार्य की कहानी, एकलव्य की मृत्यु, Story of Eklavya Drona shisya


नमस्ते भाइयो बहनों
कृपया व्यर्थ के बाद विवाद से बचें

फेसबुकिया भीमवादियों द्वारा अक्सर एक झूठ फैलाया जाता है कि गुरु द्रोण ने एकलव्य का अंगूठा इसलिये मांग लिया था कि क्योंकि वो एक शूद्र था । जबकि ऐसा बिल्क नही है आज मैं आप सबको एकलव्य की असली कहानी बता रहा हूँ जो शायद आपने नही सुनी होगी क्योंकि इस कहानी को अक्सर कथावाचकों द्वारा न तो सुनाया जाता है और न ही इस पर कोई लिखता है । खैर छोड़िए हम आपको बताते हैं आली कहानी । 
महाभारत काल मेँ प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश मेँ सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य एकलव्य के पिता निषादराज हिरण्यधनु का था। गंगा के तट पर अवस्थित श्रृंगवेरपुर उसकी सुदृढ़ राजधानी थी। उस समय श्रृंगवेरपुर राज्य की शक्ति मगध, हस्तिनापुर, मथुरा, चेदि और चन्देरी आदि बड़े राज्योँ के समकक्ष थी। निषाद हिरण्यधनु और उनके सेनापति गिरिबीर की वीरता विख्यात थी।

निषादराज हिरण्यधनु और रानी सुलेखा के स्नेहांचल से जनता सुखी व सम्पन्न थी। राजा राज्य का संचालन आमात्य (मंत्रि) परिषद की सहायता से करता था। निषादराज हिरण्यधनु को रानी सुलेखा द्वारा एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम “अभिद्युम्न” रखा गया। प्राय: लोग उसे “अभय” नाम से बुलाते थे। पाँच वर्ष की आयु मेँ अभिद्युम्न की शिक्षा की व्यवस्था कुलीय गुरूकुल मेँ की गई। गुरुकुल में ही गुरुओं ने इसकी सीखने की क्षमता को देखकर इसको नया नाम दिया एकलव्य ।


एकलव्य के युवा होने पर उसका विवाह हिरण्यधनु ने अपने एक निषाद मित्र की कन्या सुणीता से करा दिया। एकलव्य धनुर्विद्या की उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहता था। उस समय धनुर्विद्या मेँ गुरू द्रोण की ख्याति थी। एकलव्य ने अपने पिता से गुरु द्रोण के पाया धनुर्विद्या सीखने की बात कही तो पिता तो कहा गुरु द्रोण शत्रु राज्य के राजगुरु हैं और उन्होंने भीष्म को वचन भी दिया हुआ है कि वो हस्तिनापुर के राजकुमारों के सिवा किसी को शिक्षा नही देंगे । वो एक ब्राह्मण हैं इसलिए अपने वचन से नही हटेंगे वो तुम्हे शिक्षा नही देंगे । लेकिन एकलव्य जिद करके हठपूर्वक घर से गुरु द्रोण से शिक्षा प्राप्त करने निकल पड़ा । 
गुरु द्रोण के आश्रम आकर उसने स्वयं का परिचय देकर और अपनी अभिमान पूर्वक अपनी योग्यता बताकर गुरु द्रोण से शिक्षा देने की बात कही । जिसे गुरु द्रोण ने वचन बंधे होने की बात कहकर मना दिया । बार बार कहने पर भी गुरु द्रोण नही माने तो उसने आश्रम के पास छिपकर हस्तिनापुर के राजकुमारों को धनुर्विद्या सिखाते गुरु द्रोण को देखते हुए धनुर्विद्या सीखता रहा । 
और फिर एक दिन गुरु द्रोण जंगल भ्रमण को अपने शिष्यों के साथ निकले । एकलव्य भी पीछे पीछे उनके साथ गया । गुरु द्रोण के साथ गए कुत्ते ने उसे देख लिया और वो भौकने लगा । कुत्ते को चुप कराने के लिए एकलव्य ने कुत्ते का मुंह बाणों से बंद कर दिया । ये देखकर गुरु द्रोण स्तब्ध रह गए क्योंकि उस समय मे ऐसा कोई दूसरा गुरु था ही नही जो ऐसी शिक्षा दे सकता हो । 
गुरु द्रोण ने एकलव्य से उसके गुरु का नाम पूछा तो उसने उन्हें ही अपना गुरु बताया और साथ ही ये झूठ भी बोला कि उसने गुरु द्रोण की प्रतिमा बनाकर ये धनुर्विद्या सीखी । गुरु द्रोण समझ गए कि इसने छिपकर सारी धनुर्विद्या सीखी है । 
एकलव्य ने गुरु द्रोण से गुरु दक्षिणा मांगने का आग्रह किया तो द्रोण ने उससे छलपुर्वक सीखी गई विद्या को नष्ट करने के लिए उसका अंगूठा ही मांग लिया जिसे उसने काटकर दे दिया । इससे ही गुरु ने प्रसन्न होकर उसे बगैर अंगूठे के ही धनुष बाण चलाने की विद्या का दान दिया इस शर्त पर कि इसका प्रयोग कभी भी वो हस्तिनापुर पर नही करेगा । 
अपने पिता की मृत्यु के बाद एकलव्य शाशक बना जिसने अपने राज्य का खूब प्रसार किया । आसपास के सभी छोटे राज्यों को अपने मे मिला लिया । बचन बद्ध होने के कारण हस्तिनापुर पर कभी आक्रमण नही कर पाया लेकिन विष्णु पुराण और हरिवंश पुराण में उल्लिखित है कि निषाद वंश का राजा बनने के बाद एकलव्य ने जरासंध की सेना की तरफ से मथुरा पर आक्रमण कर यादव सेना का लगभग सफाया कर दिया था। यादव वंश में हाहाकर मचने के बाद जब कृष्ण ने दाहिने हाथ में महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष बाण चलाते हुए एकलव्य को देखा तो उन्हें इस दृश्य पर विश्वास ही नहीं हुआ। और उन्हें स्वयं युद्धभूमि में आकर उसके साथ युद्ध करना पड़ा जिसमे वो मारा गया ।

उसकी मृत्यु के बाद एकलव्य का पुत्र केतुमान सिंहासन पर बैठता है और वह कौरवों की सेना की ओर से पांडवों के खिलाफ लड़ता है। महाभारत युद्ध में वह भीम के हाथ से मारा जाता है ।

कुछ कथाएं और सामने आती हैं जिनमे कहा गया है कि एकलव्य निषदराज का दत्तक पुत्र था असल में वो श्रीकृष्ण के यदुवंश से था जिसे किसी ज्योतिषीय भविष्यवाणी के अनुसार निषदराज को दे दिया गया था ।

एकलव्य का युद्ध करते हुए मारा जाना और उसके पुत्र का महाभारत के युद्ध में भाग लेना ये सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि शूद्रों को भी बराबर का अधिकार था । 
वामपंथियों ने गलत तथ्य फैलाकर हिन्दू धर्म को तोड़ने का कुचक्र रचा है । 
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र सभी से निवेदन है तथ्यों की सही से जांच करें । हिंदुत्व के चार स्तम्भ में से एक भी कमजोर हुआ तो हिंदुत्व कमजोर होगा फिलहाल निशाना चतुर्थ स्तम्भ को बनाया जा रहा । सचेत रहें सतर्क रहें । 
Pt.dr.Girish mishra

आभार सतीश जी

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