फाल्गुन पुर्णिमा (होलिका दहन , दिवस ) हमें अपनी बुराई , धृणा, नफरत , बदला लेने की प्रवित्ति , आलोचना , गिले शिकवे इत्यादि
को नष्ट कर जला, कर *एक निखिल शिष्य* का पहचान इस यूग को देना है,
यकिन करो , फिर आपको छुने वाला पैदा न होगा ,आप
मुक्कदर के सिकन्दर होगे , वरमाला लिए जमाना तैयार रहेगा क्षण प्रति क्षण ...
इस वर्ष होलिका दहन को लेकर जनमानस में असमंजस की स्थिति बनी हुई है इस लेख के माध्यम से हम होलिका दहन से सम्बंधित शंकाओ का समधन कर रहे है आशा करते है सही इससे लाभान्वित होंगे।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्रदोष काल व्याप्त फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भद्रा रहित काल में होलिका दहन किया जाता है।
इस वर्ष पूर्णिमा केवल पहले दिन 24 मार्च को ही प्रदोष व्यापिनी है। 24 मार्च को प्रदोषकाल सायं 06:25 से 08:55 मिनट तक रहेगा यह भद्रा से व्याप्त है। और भद्रा निशीथ (अर्द्धरात्रि) से आगे जाकर प्रातः 05:14 पर समाप्त होगी। अगले दिन पूर्णिमा साढे तीन प्रहर से अधिक व्याप्त होने पर भी प्रतिपदा का मान पूर्णिमा के कुलमान से कम होने के कारण भारत में जहां 24 मार्च के दिन सूर्यास्त सायं 06 बजकर 10 मिनट से पहले होगा वहा होलिका दहन 24 मार्च के ही दिन अन्यथा स्मृतिसार शास्त्रानुसार दूसरे दिन यानि 25 मार्च को करना शास्त्र सम्मत है।
विशेष
ऊपर दिए गए मुहूर्त ऋषिकेश के स्थानीय समय अनुसार है अन्य प्रदेशो का मुहूर्त जानने के लिए अपने स्थानीय सूर्यास्त से गणना करें।
●तंत्रबाधा निवारण के लिए:-
1-यह साधना होली की रात्रि को सम्पन्न करें यह एक दिवसीय प्रयोग है।
2-.साधक रात्रि में स्नान करके शुद्ध लील रंग के वस्त्र धारण करें और लाल रंग के आसन पर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठ जायें।
3-अब अपने सामने बाजोट पर लाल रंग का वस्त्र बिछायें।उस पर गुरू चित्र को स्थापित करें और साथ में घी के एक दीपक को भी स्थापित करें।
4-.अब गुरू देव और गणेश जी का पूजन करें। फिर दीपक को मॉं का स्वरूप मानकर दीपक का पूजन करें।धूप, पुष्प, अक्षत कुंकुम व नैवेद्य आदि से करें.
5-अब गुरू मंत्र की 4माला जप करें।निम्न मंत्र की "काली हकीक माला" से 11माला जप करें।
मंत्र
ॐ श्रीं ह्लीं क्रीं तंत्र निवारण हिडिम्बायै नमः।
Om shreem hleem kreem tantra nivaran hidimbaye namh.
जप समाप्ति के बाद माला को जलती हुई होली में विसर्जित कर दें या अगले दिन जल प्रवाह कर दें।
साधना के बाद साधक प्रतिदिन 5 मिनट तक मंत्र का जप कुछ दिनों तक करें।इस तरह से यह साधना पूर्ण होती है।और साधक पर किया हुआ तंत्र प्रयोग दूर हो जाता है।
और भविष्य में भी तंत्र बाधा से रक्षा होती है।
यह शीघ्र फलदायी साधना है अच्छी साधना है।
||विपाशेरावती तीरे
शुतुद्रयाश्च त्रिपुष्करे||
||विवाहादि शुभे नेष्टं-
होलिकाप्राग्दिनाष्टकम् ||१||
होलाष्टक के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होला + अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है। सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है।
होलाष्टक के समय शुभ कार्य वर्जित होते है यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगता है होलाष्टक फिर आठ दिनों तक रहता है और सभी शुभ मांगलिक कार्य रोक दिए जाते है यह दुलहंडी पर रंग खेलकर खत्म होता है।
फाल्गुन शुक्ल अष्टमी पर 2 डंडे स्थापित किए जाते हैं। जिनमें एक को होलिका तथा दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है। इससे पूर्व इस स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है फिर हर दिन इसमे गोबर के उपल , लकड़ी घास और जलने में सहायक चीजे डालकर इसे बड़ा किया जाता है।
पौराणिक कथाओ एवं शास्त्रों में बताया गया है की होलाष्टक के दिन ही कामदेव ने शिव तपस्या को भंग किया था इस कारण शिव जी अत्यंत क्रोधित हो गये थे उन्होंने अपने तीसरे नेत्र की अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया था हालाकि कामदेव ने देवताओ की इच्छा और उनके अच्छे के लिए शिव को तपस्या से उठाया था।
कामदेव के भस्म होने से समस्त संसार शोक में डूब गया उनकी पत्नी रति ने शिव से विनती की वे उन्हें फिर से पुनर्जीवित कर दे तब भगवान भोलेनाथ से द्वापर में उन्हें फिर से जीवन देने की बात कही।
एक दूसरी कथा के अनुसार राजा हरिण्यकशिपु ने अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद को भगवद् भक्ति से हटाने और हरिण्यकशिपु को ही भगवान की तरह पूजने के लिये अनेक यातनाएं दी लेकिन जब किसी भी तरकीब से बात नहीं बनी तो होली से ठीक आठ दिन पहले उसने प्रह्लाद को मारने के प्रयास आरंभ कर दिये थे। लगातार आठ दिनों तक जब भगवान अपने भक्त की रक्षा करते रहे तो होलिका के अंत से यह सिलसिला थमा। इसलिये आज भी भक्त इन आठ दिनों को अशुभ मानते हैं। उनका यकीन है कि इन दिनों में शुभ कार्य करने से उनमें विघ्न बाधाएं आने की संभावनाएं अधिक रहती हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार होलाष्टक मे सभी शुभ कार्य करना वर्जित रहते हैं, क्योकी इन आठ दिवस 8 ग्रह उग्र रहते है। इन आठ दिवसो मे अष्टमी को चन्द्रमा,नवमी को सूर्य,दशमी को शनि,एकादशी को शुक्र,द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मगल, और पूर्णिमा को राहू उग्र रहते हैं। इसलिये इस अवधि में शुभ कार्य करने वर्जित है
◆होलाष्टक में न करें ये कार्य
1. विवाह:
होली से पूर्व के 8 दिनों में भूलकर भी विवाह न करें। यह समय शुभ नहीं माना जाता है, जब तक कि कोई विशेष योग आदि न हो।
2. नामकरण एवं मुंडन संस्कार:
होलाष्टक के समय में अपने बच्चे का नामकरण या मुंडन संस्कार कराने से बचें।
3. भवन निर्माण:
होलाष्टक के समय में किसी भी भवन का निर्माण कार्य प्रारंभ न कराएं। होली के बाद नए भवन के निर्माण का शुभारंभ कराएं।
4. हवन-यज्ञ:
होलाष्टक में कोई यज्ञ या हवन अनुष्ठान करने की सोच रहे हैं, तो उसे होली बाद कराएं। इस समय काल में कराने से आपको उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा।
5. नौकरी:
होलाष्टक के समय में नई नौकरी ज्वॉइन करने से बचें। अगर होली के बाद का समय मिल जाए तो अच्छा होगा। अन्यथा किसी ज्योतिषाचार्य से मुहूर्त दिखा लें।
6. भवन, वाहन आदि की खरीदारी:
संभवत हो तो होलाष्टक के समय में भवन, वाहन आदि की खरीदारी से बचें। शगुन के तौर पर भी रुपए आदी न दें।
होलाष्टक में पूजा-अर्चना की के लिए किसी भी प्रकार की मनाही नही होती। होलाष्टक के समय में अपशकुन के कारण मांगलिक कार्यों पर रोक होती है। हालांकि होलाष्टक में भगवान की पूजा-अर्चना की जाती है। इस समय में आप अपने ईष्ट देव की पूजा-अर्चना, भजन, आरती आदि करें, इससे आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी।
परंतु सकाम (किसी कामना से किये जाने वाले यज्ञादि कर्म) किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किये जाते।
7.
सनातन हिंदू धर्म में 16 प्रकार के संस्कार बताये जाते हैं इनमें से किसी भी संस्कार को संपन्न नहीं करना चाहिये। हालांकि दुर्भाग्यवश इन दिनों किसी की मौत होती है तो उसके अंत्येष्टि संस्कार के लिये भी शांति पूजन करवाया जाता है।
24 मार्च 2024 तक रहेगा इस आठ दिन के समय में कोई मांगलिक कार्य , गृह प्रवेश करना वर्जित होगा व्यक्ति को नए रोजगार और नया व्यवसाय भी नही शुरू करना चाहिए।
||जय सद्गुरुदेव, जय महाँकाल||