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आद्या काली स्तोत्र Adya Stotram a Sanskrit hymn to Adya, Universal Mother आद्या काली स्तोत्र Adya Stotram a Sanskrit hymn to Adya, Universal Mother

MTYV Sadhana Kendra -
Thursday 4th of May 2017 08:02:59 AM


महा+काली का अनुपम स्त्रोत्र आप के लिए आप इस स्त्रोत का पाठ करे और महा काली की कृपा प्राप्त करे|ये स्त्रोत्र मै इस लिए देता हू,,ताकि जो भी अध्यात्म में नए है वो नहीं जानते की मंत्र जप क्या है ?? साधना क्या है सिद्धि क्या है ,,वो इन स्त्रोत्रो का लाभ उठाकर उस परमात्मा की कृपा प्राप्त करे,,मै मानता हू की अगर पूजा करनी है तो फिर तंत्र से करे ,| क्यों की गुरुदेव हमेशा से बोलते है ,,की तंत्र ही जीवन है .... निखिल वन्दे जगत गुरु ..

इस स्त्रोत की भक्ति पूर्वक स्तुति करते है ,,वो महा काली की कृपा प्राप्त करते ही है ,,यह स्त्रोत है या कवच है ,,ये ज्ञान सिर्फ साधना काल तक होता है पर जब आप महा काली को आत्मसात करते है ,,तो फिर कवच और स्तुति का ज्ञान होता ही नहीं ,,उस जगह तो महा काली का हर मंत्र अपने आप में स्त्रोत होता है ,,हर मंत्र अपने आप में कवच होता है|आद्या काली स्तोत्र Adya Stotram a Sanskrit hymn to Adya, Universal Mother|

त्रिलोक्य  विजयस्थ  कवचस्य  शिव ऋषि , 

अनुष्टुप  छन्दः, आद्य काली देवता, माया बीजं, 

रमा  कीलकम , काम्य सिद्धि विनियोगः || १ ||



ह्रीं आद्य मे शिरः पातु श्रीं  काली वदन  ममं, 

हृदयं क्रीं परा शक्तिः पायात  कंठं  परात्परा ||२||

 

नेत्रौ पातु जगद्धात्री करनौ रक्षतु शंकरी,

घ्रान्नम पातु महा माया  रसानां  सर्व मंगला ||३||

 

दन्तान रक्षतु कौमारी  कपोलो कमलालया, 

औष्ठांधारौं  शामा रक्षेत चिबुकं चारु हासिनि ||४| 

 

ग्रीवां पायात  क्लेशानी  ककुत पातु कृपा मयी,

द्वौ बाहूबाहुदा  रक्षेत  करौ  कैवल्य दायिनी ||५||

 

स्कन्धौ  कपर्दिनी पातु पृष्ठं  त्रिलोक्य तारिनी,

पार्श्वे पायादपर्न्ना मे कोटिम मे कम्त्थासना ||६||

 

नभौ  पातु विशालाक्षी प्रजा स्थानं प्रभावती,

उरू रक्षतु कल्यांनी  पादौ मे  पातु  पार्वती ||७||

 

जयदुर्गे-वतु  प्राणान  सर्वागम सर्व  सिद्धिना,

 रक्षा हीनां  तू यत  स्थानं  वर्जितं  कवचेन  च ||८||

 

इति ते कथितं दिव्य  त्रिलोक्य  विजयाभिधम,

कवचम कालिका देव्या आद्यायाह परमादभुतम ||९||

 

पूजा काले पठेद  यस्तु आद्याधिकृत मानसः,

सर्वान कामानवाप्नोती  तस्याद्या सुप्रसीदती ||१०||

 

मंत्र सिद्धिर्वा-वेदाषु  किकराह शुद्रसिद्धयः,

अपुत्रो लभते पुत्र धनार्थी प्राप्नुयाद धनं ||११|

 

विद्यार्थी लभते विद्याम कामो कामान्वाप्नुयात 

सह्स्त्रावृति पाठेन वर्मन्नोस्य पुरस्क्रिया ||१२||

 

पुरुश्चरन्न  सम्पन्नम यथोक्त फलदं  भवेत्,

चंदनागरू  कस्तूरी कुम्कुमै  रक्त चंदनै ||१३||



भूर्जे विलिख्य गुटिका स्वर्नस्याम धार्येद यदि,

शिखायां दक्षिणे  बाह़ो कंठे वा साधकः कटी ||१४||

 

तस्याद्या  कालिका वश्या वांछितार्थ प्रयछती, 

न कुत्रापि भायं तस्य सर्वत्र विजयी कविः ||१५||

 

अरोगी  चिर  जीवी  स्यात  बलवान  धारण शाम,

सर्वविद्यासु निपुण सर्व  शास्त्रार्थ  तत्त्व  वित्  ||१६||

 

वशे तस्य  माहि पाला भोग मोक्षै   कर  स्थितो,

 कलि  कल्मष युक्तानां निःश्रेयस   कर  परम ||१७||

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