?
?गुरु कृपा अनूभव
?
?
सद्गूरूदेव ने ek बार शिविर मे ये कथन कहे थे ....
जो मेरा है वो दूर हो के भी मेरे पास आ जायेगा ....
और जो मेरा नही है वो पास आ के भी दूर हो जायेगा .....
कहने का तात्पर्य जो सद्गूरूदेव से जन्मो जन्मो से जुड़े है फिर चाहे वो उनसे कितने भी दूर क्यूँ ना हो वो उन्हे अपने पास बुला ही लेते है.......
इसी कड़ी मे सद्गूरूदेव से जुड़े हमारे वरिष्ठ गुरु भाई का ये अनूबह्व .........
डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी"......
ये नाम हमारे घर मे लगे एक तस्वीर पर लिखा है जिसे घर मे आने वाला हर
मेहमान पड़ता जरूर है और अपने आपको पूछने से रोक नही पाता कि ये आदमी कौन
है?
और ये भगवा धोती पहने लंबी दाढ़ी अति सुंदर जटाओ वाले ये बाबा जी ....ये कौन है??????..........
जवाब ये नही आता कि ये हमारे सद्गुरुदेव है .......हमारा जवाब होता है कि ये हमारे *"HEAD OF THE FAMILY"* है।
.....तो क्या ये दोनों तस्वीर एक ही है
....जी हां ये एक ही है
......हमने इन्हें कभी नही देखा लेकिन ऐसा लग रहा है मानो वर्षो से जानते है हम इन्हें
........ये बात एक नही कई मेहमानों के मुख से सुनते आया हूँ.............
पूज्यपाद का जहां संबंध होता है वो उसे अपने पास बुला ही लेते है और इतना ही नही कभी कभी तो स्वयं ही आ जाते है
और ऐसा ही कुछ आज से लगभग 24 साल पहले मेरे पिताजी के साथ हुआ । उस समय
पापा के पास कुछ खास काम नही था जॉब ढूंढ रहे थे मैं लगभग 2 साल का होऊंगा
भाई 7 साल का ओर मम्मी स्कूल टीचर......
एक दिन हमारे कॉलोनी में रहने
वाला एक परिवार सुबह हमारे घर के सामने से गुजर रहा था तो वो पापा से यूँ
ही मिलने आ गए बातो बातो में पूछने से पता चला कि वो किसी गुरु जी से मिलने
जा रहे है पीतमपुरा कोहाट एनकलेव में आये हुए है और बात बात में पापा को
साथ चलने को कहते है कि "मिल लो एक बार क्या पता काम का कुछ हो जाये"
तो पापा ने कहा कि
पता दे जाओ मैं नाहा धो के आता हूं.....
ये शायद टालने के लिए ही बोला होगा......
लेकिन फिर मम्मी के कहने पर पापा दोपहर को निकल जाते है
जैसे तैसे वहां पहुंचते है,,,,
पता ढूंढ नही पाते है,,,,
गर्मी का समय,,,,
खाली रोड ,,,,,
एक व्यक्ति का मिलना,,,
खुद ही पता बता देना,,,,,
ओर मुड़ कर देखने पर फिर न दिखाई देना,,,,
........खैर
आखिर आश्रम पहुंचते है काफी भीड़ भी थी सब गुरुदेव से मिलने के लिए लाइन लगाए हुए थे एक कमरे में गुरुदेव थे ।
जैसे ही पापा आश्रम के अंदर गए उन्होंने पहली जो तस्वीर देखी तो उनके रोंगटे खड़े हो गए
अरे!
इन्हें तो मैने आज ही सुबह सपने में देखा था ,,,,, ये नारंगी वस्त्र....क्लीन शेव......
ऐसे ही आल्ती पालती मारे जंगल मे बैठे थे ध्यान में ,,,,तो उन्हें लगा कि
कोई पूजा कर रहा है तो वो उन्हें देख रास्ता छोड़ प्रणाम करके घूम के निकल
गए थे...................
बस फिर क्या था अब तो पापा को उनसे मिलना ही था
कि कौन है ये
लेकिन फिर पता चला कि मिलने के लिए पर्ची कटेगी ओर कुछ पैसे लगेंगे
शायद 50 या 100 रूपये......वो तो थे नही लेकिन मिलना तो था ही तो लगे वह
बहस करने की आप मेरी घड़ी रख लो.....कपड़े रख लो ,, पैसे नही है तो क्या गुरु
मिलेंगे नही .....लेकिन वहां के कड़े नियम के कारण उनकी एक न चली और वो आ
गए मन मे गुस्सा ओर दुख लेकर
घर आने के बाद जब भी आराम के लिए लेटते तो बार बार आश्रम में देखे हुए तस्वीर दिखाई देती ओर आंख खुल जाती वो उठ कर बैठ जाते.....
वो बताते है कि एक बार तो उन्हें डर भी लग गया कि वहाँ तंत्र - मंत्र लिखा था कही जादू टोना तो नही हो गया।
ओर फिर उसी रात उन्होंने वही पिछली रात वाला सपना फिर से देखा
वही जंगल मे बैठे सद्गुरुदेव लेकिन इस बार आंखे खुली हुई
बोले
तू मेरे इतना पास आया और मिलकर भी नही गया
पाप बोले कि - उन लोगो ने मिलने नही दिया
क्योंकि मेरे पास पैसे नही थे। क्या जिसके पास पैसे नही होंगे वो आपसे मिल भी नही सकता
*तो वो बोले कि ऐसा किसने कहा..... देख मैं खुद आ गया न तुझसे मिलने*
ओर आशीर्वाद भी दिया
उसके बाद 3 या 4 दिन बाद ही पानीपत में गुरु पूर्णिमा का शिविर था पापा
वहां गए और दीक्षा भी ली वहां भी कई ऐसे अनुभव उन्हें हुए जो ये बता देते
है कि
सद्गुरुदेव को जिससे मिलना होता है उसे बुलाते है नही तो खुद आ
जाते है और इतना ही नही वो लाखो साधको के मन की बात जानते है और किसे क्या
चाहिए बिना मांगे ही दे देते भी है।।।।।साधक ओर गुरु का संबंध जन्म जन्मो
का होता है......
पिछले जन्मों में भी शायद हमने गाया ही होगा.....
*यदि मानव का मुझे जन्म मिले तो तब चरणों का पुजारी बनू*
*इस पूजक की इक इक रग का हो तार तुम्हारे हाथों में*
उस दिन के बाद से वो हमारे घर के HEAD है पूरा घर उनकी ही तस्वीर से भरा है सुबह शाम कुछ भी करना हो तो उनकी आज्ञा से करते है
ओर बस इतना ही कहते है कि ??
*हे गुरुवर बस आपकी इच्छा ही पूर्ण हो* ??
जय सद्गूरूदेव जय माँ भगवती ....