मंत्र सिद्धि रहस्य
मंत्र अपना प्रभाव तभी दिखातें हैं जब उन्हें सिद्धि कर लिया जाये। मंत्र सिद्धि के अलग अलग प्रयोग हमारे शास्त्रों में दिया गए हैं लेकिन गुप्त प्रयोगों को समझना एक साधारण व्यक्ति के लिए बहतु कठिन हैं।
जो व्यक्ति साधना करना चाहता है उसके लिए उसके लिए सर्वप्रथम आवश्यक है कि वह गुरु , मंत्र और मंत्र देवता के प्रति पूर्ण समर्पित हो।
गुरुमंत्र अनुष्ठान -
गुरुमंत्र अनुष्ठान के तीन प्रकार है.
1) लघु अनुष्ठान:- इसमे 24,000 (240 माला )मंत्र जाप करना पड़ता है। 9 दिनो मे रोज 27 माला और 240 आहुति देनी होती है.
2) मध्यम अनुष्ठान:- इसमे 125000 (1250 माला )मंत्र जाप करना पड़ता है। 40 दिनो मे 33 माला रोज और 1250 आहुति देनी होती है. दिन 11,21,31,41, भी रख सकते है.
3) महा अनुष्ठान:- इसमे 16 लाख मंत्र (क्योकि मंत्र में 16 अक्षर है ) जाप करना पड़ता है. 1 वर्ष मे रोज 41 माला और अनुष्ठान पूर्ण होने पर दशांश (जितने मंत्र हो उसका १० % )आहुति देनी होती है.
स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला हो तो अच्छा है और यदि न हो तो जो भी आपको दीक्षा के समय मिली हो उसका उपयोग कर सकते है ,(वैसे माला से ज्यादा महत्वपूर्ण आपकी अपने सदगुरुदेव ,मंत्र पर कितनी श्रद्धा,विश्वास,है यह महत्वपूर्ण है )
आपको अनुष्ठान दौरान निम्नलिखित नियमो का पालन करना चाहिए.
हर दिन एक ही समय पर मंत्र जाप करे। जहा अनुष्ठान करना है वो जगह पूरी तरह से सात्विक और शांततामय हो।
अनुष्ठान व साधना मे शाकाहारी भोजन करे या दिन मे एक ही बार भोजन करे.
अनुष्ठान अवधि मे पूर्ण ब्रम्हचारी (शारीरिक/मानसिक) रहे।
अनुष्ठान/साधना अवधि मे दौरान ब्रम्हचार्य टूटता है तो फिर से शुरू करे।
अगर किसी कारणवश हवन ना कर सके तो ,हवन की जितनी माला आती है वो संकल्प ले कर, मंत्र जप कर लेना चाहिए ..........
***अनुष्ठान में दैनिक साधना में जो मंत्र आपके गुरु ने दीक्षा के समय प्रदान किये हो उसको शामिल नहीं किया जाता। **
(शुरुवात लघु अनुष्ठान उसके पश्चात मध्यम और अंत में महा अनुष्ठान करना चाहिए )
एक साधक के लिए साधना में सफलता प्राप्त करना उसका एक मात्र लक्ष्य होता है, उसके बिना तो जीवन जीवन ही नहीं कहा जा सकता | पर क्या साधारण रूप से केवल कुछ देर मंत्र जप कर लेने को ही साधना कहते हैं ? क्या ईष्ट दर्शन इतना सहज है कि नित्य पापों में रत होते हुए भी भगवान के दर्शन कर सकते हैं ?
कैसा होना चाहिए एक साधक का जीवन ?
गुरु साधना पक्ष में सबसे आवश्यक कड़ी है, जिनके बिना किसी भी साधना में सफलता नहीं पाई जा सकती | “गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि जतन कीजै..”, यदि हम करोड़ मंत्र जाप भी करें, तो भी भगवती जगदम्बा के दर्शन कर पाना संभव नहीं है, अगर जीवन में गुरु नहीं हैं तो | परन्तु गुरु भी तो केवल मार्गदर्शन ही कर सकते हैं, प्रयत्न तो साधक को ही करना होता है, अगर शुरुआत में थोड़ी दिक्कतें आती भी हैं तो विश्वास छोड़ देना, या गुरु को दोष देना.. क्या उचित है ? और क्या ऐसे साधारण जीवन जीने को जीना कहते हैं, जो कि केवल जिन्दा रहना और मर जाना है, क्या ऐसा जीवन, जीवन कहलाता है ...? नहीं ! जीवन तो अपने ईष्ट से साक्षात्कार करने के बाद ही पूर्ण कहला सकता है | और यह सब अगर सम्भव है, तो केवल गुरु कृपा से | अपने गुरु के प्रति अटूट विश्वास से.. सेवा से.. और समर्पण से...!
साधक को कभी भी प्राथमिक असफलताओं से विचलित नहीं हो जाना चाहिए | रास्ते में बाधाएं तो आती ही हैं, परन्तु हिम्मत हार कर बैठ जाने वाले व्यक्ति को कभी भी सफलता नहीं मिलती | जो गुरु के प्रति पूर्ण लीन होके सतत प्रयासरत रहता है, वही साधना के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है |
जीवन में तुम्हें एक क्षण भी रुकना नहीं है, निरंतर आगे बहना है क्यूंकि जो साहसी होते हैं, जो दृढ़ निश्चयी होते हैं जिनके प्राणों में गुरुत्व का अंश होता है, वही आगे बढ़ सकता है.. और इस आगे बढ़ने में जो आनंद है, जो तृप्ति है, वह जीवन का सौभाग्य है |
-सदगुरुदेव जी-
पवित्रीकरण
बाए हाथ मे जल लेकर उसे दाये हाथ से ढककर निम्न मंत्र पढे
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्था गतो·पी वा |
य: स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतर: शुचि: |
इस अभिमंत्रित जल को दाहिने हाथ की उंगलियों से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिडके, जिससे आंतरिक और बाहय शुद्धि हो |
आचमन
मन, वाणी तथा हृदय की शुद्धि के लिए पंचपात्र से आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार निम्न मंत्रो के उच्चारण के साथ पिये.
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा |
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा |
ॐ सत्यं यश: श्रीर्मयि श्री:श्रयतां स्वाहा |
शिखा बंधन
तदुपरान्त शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति का स्थापन करे, जिससे साधना पथ में प्रवृत्त होने के लिए आवश्यक उर्जा प्राप्त हों सके —
चिद्रूपिणि महामाये दिव्य तेज: समन्विते: |
तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुद्ध मे | |
न्यास
इसके उपरांत मंत्रो के द्वारा अपने सम्पूर्ण शरीर को साधना के लिए पुष्ट व सबल बनाए| प्रत्येक मंत्र उच्चारण के साथ संबधित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करे……
ॐ वाङगमे आस्येस्तु (मुख को स्पर्श करे)
ॐ नसोर्मे प्राणोंअस्तु (नासिका के दोनों छिद्रों को )
ॐ चक्षुमे तेजोस्तु (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णोमे क्षोत्रमस्तु (दोनों कानो को )
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु (दोनों बाँहों को)
ॐ अरिष्टानि मे अंगानि सन्तु (सम्पूर्ण शरीर को)
आसन पूजन
अब अपने आसन के नीचे कुंकुम या चन्दन से त्रिकोण बनाकर उस पर अक्षत, चन्दन व पुष्प निम्न मंत्र बोलते हुये समर्पित करे और हाथ जोड़कर प्रार्थना करे —
ॐ पृथ्वी ! त्वया धृता लोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता |
त्वं च धारय माँ देवि ! पवित्रं कुरु चासनम |
दिग बंधन
बाए हाथ मे जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से चारों दिशाओ मे ऊपर व नीचे छिड्के
ॐ अपसर्पन्तु ये भुता ये भुता: भूमि संस्थिता: |
ये भुता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया: ||
अपक्रामन्तु भूतानी पिशाचा: सर्वतो दिशम |
सर्वषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ||
गणेश स्मरण
तत्पश्चात गणपती के बारह नामो का स्मरण करे, प्रत्येक कार्य करने के पूर्व भी इन बारह नामो का स्मरण सिद्धिदायक माना गया है.
सुमुखश्चैकदंतश्च कपिलो गजकर्णक: | लंबोदरश्च विकटों विघ्ननाशो विनायक: ||
धूम्रकेतु र्गनाध्यक्षों भालचंद्रों गजानन: | द्वादशै तानी नामनि य: पठेच्छृनुयादपि ||
विद्यारंभे विवाह च प्रवेशे निर्गमे तथा | संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ||
श्री गुरु ध्यान
व्दिदल कमलमध्ये बद्ध संवितसमुद्र | धृतशिवमयगात्र साधकनुग्रहार्थम ||
श्रुतिशिरसी विभान्त बोधमार्तण्ड मूर्ति |शमित तिमीरशोक श्री गुरु भावयामि ||
हृदयबुजे कर्णिक मध्यसंस्थ | सिंहासने संस्थित दिव्यमूर्तिम ||
ध्यायेद गुरु चंद्रशिला प्रकाश | चितपुस्तिकभीष्टवर दधानम ||
श्रीगुरु चरणकमलेभ्यो नम: ध्यान समर्पयामी ||
आवाहन
ॐ स्वरुपनिरूपण हेतवे श्री गुरवे नमः |
ॐ स्वच्छप्रकाशविमर्श-हेतवे श्रीपरम गुरुभ्यों नमः |
ॐ स्वात्मारामो पंजरविलीन तेजसे श्रीपारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः,
आवाहयामि पूजयामी | मम देह स्वरूप, प्राणस्वरूप आत्मस्वरूप,
चिंत्य-अचिंत्यस्वरूप, समस्त रूप रूपत्व गुरुमावाहयामि, स्थापयामी नमः |
मंत्र
स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से सर्वप्रथम 4 माला गुरु मंत्र का जप करे, तत्पश्चात 1-1 माला चेतना मंत्र एवं गायत्री मंत्र का भी जप करे.
गुरुमंत्र – ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः
चेतनामंत्र – ॐ ह्रीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नमः
गायत्रीमंत्र – ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्य भर्गोंदेवस्य धीमही धियो योन: प्रचोदयात
जप समर्पण मंत्र
ॐ गुह्र्यातिगुह्र्य गोप्ता त्वं गृहाणास्मत्कृत जपम |
सिद्धिर्भवतु मे देव ! त्वत प्रसादान्महेश्वर ||
भावार्थ – समस्त गोपनीय विदयाओ को जानने वाले हे पूज्यपाद गुरुदेव! मेरे व्दारा समर्पित पुजा एवं मंत्र जप को स्वीकार करे तथा अभीष्ट सिद्धि प्रदान करे.
क्षमा प्रार्थना
आवाहन न जानामि न जानामि विसर्जनम |
पुजा चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर |
मंत्रहीन क्रियाहीन भक्तिहीन सुरेश्वर |
यतपूजित मया देव ! परिपूर्ण तदस्तु मे ||