होली : महाविद्या धूमावती साधना
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धूमावती साधना समस्त प्रकार की तन्त्र बाधाओं की रामबाण काट है.
यह साधना होली की रात्रि में की जा सकती है.दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए काले रंग के वस्त्र पहनकर जाप करें. जाप रात्रि ९ से ४ के बीच करें
जाप के पहले तथा बाद मे गुरु मन्त्र की १ माला जाप करें
॥ ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥
जाप से पहले हाथ में जल लेकर माता से अपनी समस्या के समाधान की प्रार्थना करें.अपने सामने एक सूखा नारियल रखें.
उसपर हनुमान जी को चढने वाला सिन्दूर चढायें.
काले रंग का धागा अपनी कमर पर तीन लपेट लगाकर बान्धें.
अब रुद्राक्ष की माला से १०८ माला निम्नलिखित मन्त्र का जाप करें
॥ धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥
जाप के बाद काले धागे को कैंची से काट्कर सूखे सिंदूर चढे नारियल के साथ रख लें.आग जलाकर १०८ बार काली मिर्च में सिन्दूर तथा सरसों का तेल मिलाकर निम्न मन्त्र से आहुति देकर हवन करें :-
॥ धूं धूं धूमावती ठः ठः स्वाहा॥
इसके बाद नारियल पर धागे को लपेट दें. इसे अब तीन बार सिर से पांव तक तथा पांव से सिर तक छुवा लें तथा प्रार्थना करें कि मेरे समस्त बाधाओं का माता धूमावती निवारण करें. अब इस नारियल को धागे सहित आग में डाल दें. हाथ जोडकर समस्त अपराधों के लिये क्षमा मांगें.
अंत में एक पानी वाला नारियल फ़ोडकर उसका पानी हवन में डाल दें, इस नारियल को बाहर फ़ेंक दें इसे खायें नही.अब नहा लें तथा जगह हो तो जाप वाली जगह पर ही सो जायें.आग ठंडि होने के बाद अगले दिन राख को नदी या तालाब में विसर्जित करें
शत्रु का विनाश तथा कर्ज और आर्थिक समस्या से मुक्ति दिलाता है मां धूमावती कवच।
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।।धूमावती कवचम्।।
श्रीपार्वत्युवाच
धूमावत्यर्चनं शम्भो श्रुतम् विस्तरतो मया।
कवचं श्रोतुमिच्छामि तस्या देव वदस्व मे।।1।।
श्रीभैरव उवाच
शृणु देवि परङ्गुह्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।
कवचं श्रीधूमावत्या: शत्रुनिग्रहकारकम्।।2।।
ब्रह्माद्या देवि सततम् यद्वशादरिघातिन:।
योगिनोऽभवञ्छत्रुघ्ना यस्या ध्यानप्रभावत:।।3।।
ॐ अस्य श्री धूमावती कवचस्य पिप्पलाद ऋषि: निवृत छन्द:, श्री धूमावती देवता, धूं बीजं, स्वाहा शक्तिः, धूमावती कीलकं, शत्रुहनने पाठे विनियोग:।।
ॐ धूं बीजं मे शिरः पातु धूं ललाटं सदाऽवतु।
धूमा नेत्रयुग्मं पातु वती कर्णौ सदाऽवतु।।1।।
दीर्ग्घा तुउदरमध्ये तु नाभिं में मलिनाम्बरा।
शूर्पहस्ता पातु गुह्यं रूक्षा रक्षतु जानुनी।।2।।
मुखं में पातु भीमाख्या स्वाहा रक्षतु नासिकाम्।
सर्वा विद्याऽवतु कण्ठम् विवर्णा बाहुयुग्मकम्।।3।।
चञ्चला हृदयम्पातु दुष्टा पार्श्वं सदाऽवतु।
धूमहस्ता सदा पातु पादौ पातु भयावहा।।4।।
प्रवृद्धरोमा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासार्द्दिता देवी भयदा कलहप्रिया।।5।।
सर्वाङ्गम्पातु मे देवी सर्वशत्रुविनाशिनी।
इति ते कवचम्पुण्यङ्कथितम्भुवि दुर्लभम्।।6।।
न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यन्न प्रकाश्यङ्कलौ युगे।
पठनीयम्महादेवि त्रिसन्ध्यन्ध्यानतत्परैः।।7।।
दुष्टाभिचारो देवेशि तद्गात्रन्नैव संस्पृशेत्।।8।।
।।इति भैरवीभैरवसम्वादे धूमावतीतन्त्रे धूमावतीकवचं सम्पूर्णम्।।