मैं समय हूँ**.
समय तो जरुर पढना..
पुराने समय की बात है.एक खुबसुरत टापु पर सभी भावनाए और गुण
अच्छे घर बनाकर रहते थे.सुंदरता, आनंद, उदासीनता वगैरा एक-दुसरे के
आस-पास रहते थे.इन सब से दुर एक कोने के घर मेँ प्रेम रहता था.
एक दिन सुबह एक परी ने आकर सभी टापुवासियो को कहा कि आज शाम
तक यह टापु डुब जाएगा..सभी भावनाए और गुण अपनी-अपनी नाव लेकर भागने लगे.....सिर्फ प्रेम शांति से चक्कर लगा रहा था.
मानो कि उसको जाने कि कोई जल्दी नही थी.......सभी को अचरज हुआ.
लेकिन सभी अपने-अपने तरीके से भागने कि तैयारी मेँ थे.
इसलिए प्रेम से पंचायत करने कौन बैठे ?
हकीकत मेँ प्रेम को टापु से बहुत प्यार था. प्रेम अंतिम क्षण तक टापु के साथ
रहना चाहता था…
जैसे जैसे शाम हुई वैसे वैसे धीरे धीरे टापु डुबने लगा.....प्रेम ने टापु को बहुत प्रेम किया टापु के कणो कणो मेँ प्रेम भर दिया.....पुरा टापु प्रेम प्रेम हो गया.
अब पानी बढने लगा तब प्रेम के घुटने पानी में डुबने लगे. ....अब प्रेम को लगा कि टापु छोडने का समय आ गया है. लेकिन प्रेम के पास तो नाव भी नही थी.
मदद के लिए अब किसको बुलाये ?
बस, उसी समय सम्रद्धि कि नाव निकली.
प्रेम ने पुछा कि, ‘बहन सम्रद्धि! तु मुझे अपनी नाव मेँ लेकर जाएगी? नही तो मेँ डुब जाउंगा….’ सम्रद्धि ने अपनी नाव मेँ एक नजर डालकर कहा कि,
‘माफ करना प्रेम ! मेरी पुरी नाव सोना, चाँदी और हीरे जवाराहत से भरी है.
इसमे तेरे लिए कही जगह नही !’ इतना कहकर प्रेम कि तरफ दुसरी नजर डाले बिना सम्रद्धि चली गई.
उसके पीछे पीछे नाव लेकर आ रही सुंदरता को हाथ हिलाकर चिल्लाया,
‘हे सुंदरता ! तु मुझे अपनी नाव मेँ बिठायेगी ?’
अपने आप पर और अपनी सुंदर नाव पर नजर डालकर मगरुरता से कहा
‘माफ करना प्रेम ! तु इतना गीला है....कि अगर.. तु मेरी नाव को
गंदा कर दोगे और मुझे ये पंसद नही यह बात तुम जानते हो !!
और मुझे मेरी नाव गंदी करने मेँ कोई दिलचस्पी नही !’ इतना कहकर चली गई.
पानी अब प्रेम के सीने तक आ गया. तभी प्रेम ने उदासीनता की नाव को जाते हुए देखा प्रेम चिल्लाया कि, ‘अरे! उदासीनता, मुझे भी अपने साथ ले चलो.
महेरबानी करके मुझे बचा लो.’ लेकिन उदासीनता उदास थी. वो बोली,
‘माफी माँगती हूँ प्रेम तुझ से ! मैँ इतनी उदास हूँ कि तु मुझे अकेला छोड दे !’
और वो भी चली गई.
वहा सेँ आनंद अपने नाचगान मेँ मशगुल था उसने भी प्रेम कि एक भी नही सुनी!! पानी प्रेम के गले तक आ गया. खुद अब हमेशा के लिए डुब जाएगा ऐसा झटका लगा प्रेम को. वो जोर जोर से रोने लगा. तभी पीछे से प्रेम भरी आवाज आयी : ‘प्रेम !
तु रो मत. चल तुझे मेरी नाव मेँ ले जाता हूँ!’ प्रेम ने पीछे देखा तो एक अधेड़
बुढा आदमी नाव लेकर खडा था. उसने प्रेम का हाथ पकडकर अपनी नाव मेँ खीँच लिया. प्रेम उस समय बराबर डुबने की तैयारी मेँ ही था. अचानक उभर जाने से प्रेम थोडा हतप्रभ हो गया. वो कुछ बोल ही नही पा रहा था. उस बुढे ने उसे किनारे पर छोडा तब भी कुछ नही बोला. बस चुप्पी मेँ बुढे का आभार माना.
वो बुढा भी प्रेम को उतार कर चुपचाप चला गया.
अचानक प्रेम को याद आया की डुब जाने के डर और बच जाने की खुशी मेँ खुद को बचाने वाले बुढे का नाम पुछना भी भुल गया !
इतना छोटा शिष्टाचार भी अपने आप को कोसने लगा. वो पता लगाने के लिए
दौड़ता दौड़ता ज्ञान के घर गया. ज्ञान के घर जाकर पुरी बात बताई.
बाद मेँ उस बुढे आदमी के बारे मेँ पुछा ज्ञान नेँ आँखें बंद की.
थोडी देर बाद आँख खोल कर कहा, ‘तुझे बचाने वाला समय था!’
प्रेम को अचरज हुआ. इसके बारे मेँ प्रेम ने पुछ लिया कि,
‘हे ज्ञान ! जब कोई भी मेरी मदद करने को तैयार
नही था तो सिर्फ समय ने ही क्युँ बचाया ?’
ज्ञान ने गंभीरता पुर्वक और सदियों का निचोड
अनुभव से जवाब दिया कि :‘कारण तो सिर्फ समय ही जानता है,
समझता है और समझा सकता है कि प्रेम
कितना महान है और इसका क्या महत्व है.
समय तो जरुर पढना..
पुराने समय की बात है.एक खुबसुरत टापु पर सभी भावनाए और गुण
अच्छे घर बनाकर रहते थे.सुंदरता, आनंद, उदासीनता वगैरा एक-दुसरे के
आस-पास रहते थे.इन सब से दुर एक कोने के घर मेँ प्रेम रहता था.
एक दिन सुबह एक परी ने आकर सभी टापुवासियो को कहा कि आज शाम
तक यह टापु डुब जाएगा..सभी भावनाए और गुण अपनी-अपनी नाव लेकर भागने लगे.....सिर्फ प्रेम शांति से चक्कर लगा रहा था.
मानो कि उसको जाने कि कोई जल्दी नही थी.......सभी को अचरज हुआ.
लेकिन सभी अपने-अपने तरीके से भागने कि तैयारी मेँ थे.
इसलिए प्रेम से पंचायत करने कौन बैठे ?
हकीकत मेँ प्रेम को टापु से बहुत प्यार था. प्रेम अंतिम क्षण तक टापु के साथ
रहना चाहता था…
जैसे जैसे शाम हुई वैसे वैसे धीरे धीरे टापु डुबने लगा.....प्रेम ने टापु को बहुत प्रेम किया टापु के कणो कणो मेँ प्रेम भर दिया.....पुरा टापु प्रेम प्रेम हो गया.
अब पानी बढने लगा तब प्रेम के घुटने पानी में डुबने लगे. ....अब प्रेम को लगा कि टापु छोडने का समय आ गया है. लेकिन प्रेम के पास तो नाव भी नही थी.
मदद के लिए अब किसको बुलाये ?
बस, उसी समय सम्रद्धि कि नाव निकली.
प्रेम ने पुछा कि, ‘बहन सम्रद्धि! तु मुझे अपनी नाव मेँ लेकर जाएगी? नही तो मेँ डुब जाउंगा….’ सम्रद्धि ने अपनी नाव मेँ एक नजर डालकर कहा कि,
‘माफ करना प्रेम ! मेरी पुरी नाव सोना, चाँदी और हीरे जवाराहत से भरी है.
इसमे तेरे लिए कही जगह नही !’ इतना कहकर प्रेम कि तरफ दुसरी नजर डाले बिना सम्रद्धि चली गई.
उसके पीछे पीछे नाव लेकर आ रही सुंदरता को हाथ हिलाकर चिल्लाया,
‘हे सुंदरता ! तु मुझे अपनी नाव मेँ बिठायेगी ?’
अपने आप पर और अपनी सुंदर नाव पर नजर डालकर मगरुरता से कहा
‘माफ करना प्रेम ! तु इतना गीला है....कि अगर.. तु मेरी नाव को
गंदा कर दोगे और मुझे ये पंसद नही यह बात तुम जानते हो !!
और मुझे मेरी नाव गंदी करने मेँ कोई दिलचस्पी नही !’ इतना कहकर चली गई.
पानी अब प्रेम के सीने तक आ गया. तभी प्रेम ने उदासीनता की नाव को जाते हुए देखा प्रेम चिल्लाया कि, ‘अरे! उदासीनता, मुझे भी अपने साथ ले चलो.
महेरबानी करके मुझे बचा लो.’ लेकिन उदासीनता उदास थी. वो बोली,
‘माफी माँगती हूँ प्रेम तुझ से ! मैँ इतनी उदास हूँ कि तु मुझे अकेला छोड दे !’
और वो भी चली गई.
वहा सेँ आनंद अपने नाचगान मेँ मशगुल था उसने भी प्रेम कि एक भी नही सुनी!! पानी प्रेम के गले तक आ गया. खुद अब हमेशा के लिए डुब जाएगा ऐसा झटका लगा प्रेम को. वो जोर जोर से रोने लगा. तभी पीछे से प्रेम भरी आवाज आयी : ‘प्रेम !
तु रो मत. चल तुझे मेरी नाव मेँ ले जाता हूँ!’ प्रेम ने पीछे देखा तो एक अधेड़
बुढा आदमी नाव लेकर खडा था. उसने प्रेम का हाथ पकडकर अपनी नाव मेँ खीँच लिया. प्रेम उस समय बराबर डुबने की तैयारी मेँ ही था. अचानक उभर जाने से प्रेम थोडा हतप्रभ हो गया. वो कुछ बोल ही नही पा रहा था. उस बुढे ने उसे किनारे पर छोडा तब भी कुछ नही बोला. बस चुप्पी मेँ बुढे का आभार माना.
वो बुढा भी प्रेम को उतार कर चुपचाप चला गया.
अचानक प्रेम को याद आया की डुब जाने के डर और बच जाने की खुशी मेँ खुद को बचाने वाले बुढे का नाम पुछना भी भुल गया !
इतना छोटा शिष्टाचार भी अपने आप को कोसने लगा. वो पता लगाने के लिए
दौड़ता दौड़ता ज्ञान के घर गया. ज्ञान के घर जाकर पुरी बात बताई.
बाद मेँ उस बुढे आदमी के बारे मेँ पुछा ज्ञान नेँ आँखें बंद की.
थोडी देर बाद आँख खोल कर कहा, ‘तुझे बचाने वाला समय था!’
प्रेम को अचरज हुआ. इसके बारे मेँ प्रेम ने पुछ लिया कि,
‘हे ज्ञान ! जब कोई भी मेरी मदद करने को तैयार
नही था तो सिर्फ समय ने ही क्युँ बचाया ?’
ज्ञान ने गंभीरता पुर्वक और सदियों का निचोड
अनुभव से जवाब दिया कि :‘कारण तो सिर्फ समय ही जानता है,
समझता है और समझा सकता है कि प्रेम
कितना महान है और इसका क्या महत्व है.