भगवती त्रिपुर भैरवी महाभैरव की ही शक्ति हैं
नित्य प्रलय आद्या शक्ति
त्रिपुर भैरवी
प्रलय के बिना निर्माण संभव नहीं है।
बुरी शक्तियों, तत्वों के विनाश के बिना
श्रेष्ठ शक्तियां स्थापित नहीं हो सकती हैं,
जीवन के दोषों, बाधाओं को समाप्त करना प्रलय है,
इसी से जीवन में निर्माण प्रारम्भ होता है।
जीवन में निर्भयता एवं बाधाओं के निवारण के लिए व्यक्ति अनेक उपाय करता ही रहता है, किन्तु उसके लिए आवश्यक है, कि दैवीय संरक्षण भी प्राप्त हो और इसके लिए उच्चस्तरीय साधना सम्पन्न करने का मार्गदर्शन भी प्राप्त हो। मार्गदर्शन तथा सरंक्षण दोनों एक साथ प्राप्त करने का एकमात्र उपाय है – ‘त्रिपुर भैरवी साधना’।
त्रिपुर भैरवी साधना दस महाविद्याओं में अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं तीव्र साधनात्मक स्वरूप है, इस साधना से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सुरक्षा प्राप्त होेने लगती है और समस्त बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। इस साधना के माध्यम से साधक पूर्ण क्षमतावान एवं वेगवान बन सकता है।
दस महाविद्याओं में भगवती त्रिपुर भैरवी षष्ठम् क्रम में आती हैं। इनकी साधना से साधक को समाज में यश, सम्मान, समाज में प्रतिष्ठा तथा वर्चस्व प्राप्त होता है। त्रिपुर भैरवी को भगवती आद्या काली का ही स्वरूप माना गया है।
पुराणों में प्रसंग आता है, कि प्रजापति दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें अपनी पुत्री सती एवं उनके पति शिव नहीं तो आमंत्रित किया। सती बिना आमंत्रण के भी यज्ञ में जाने को उद्यत हो गईं और जब सती वहां पहुंचीं तो उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया। जिससे सती को क्रोध आ गया और क्रोध से उनका स्वरूप अत्यन्त उग्र व प्रचण्ड हो गया, देवी के प्रचण्ड स्वरूप को देखकर शिव वहां से जाने लगे। तब अपने ही शरीर से सती ने दस महाविद्याओं का प्रस्फुटन किया, जिन्होंने शिव को दस अलग-अलग दिशाओं में मार्ग अवरुद्ध कर भागने से रोका। दक्षिण दिशा में रोकने वाली देवी भगवती त्रिपुर भैरवी थीं। वे शत्रुओं का दलन करने वाली त्रिजगत तारिणी तथा षट्कर्मों में उपास्या हैं।
पंचमी विद्या भगवती छिन्नमस्ता का सम्बन्ध ‘महाप्रलय’ से है, जबकि त्रिपुर भैरवी का सम्बन्ध ‘नित्य प्रलय’ से है। प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होता रहता है। नष्ट करने का कार्य रुद्र का है और उन्हीं की शक्ति का नाम त्रिपुर भैरवी है। राजराजेश्वरी भुवनेश्वरी जिस प्रकार तीनों भुवनों के पदार्थों की रक्षा करती हैं, उसी प्रकार त्रिपुर भैरवी उन सभी पदार्थों का नाश करती हैं। त्रिभुवन के क्षणिक पदार्थों का प्रतिक्षण विनाश इसी शक्ति पर निर्भर है। प्रलय के बिना निर्माण संभव नहीं है। बुरी शक्तियों, तत्वों के विनाश बिना श्रेष्ठ शक्तियां स्थापित नहीं हो सकती हैं, जीवन के दोषों, बाधाओं को समाप्त करना प्रलय है, इसी से जीवन में निर्माण प्रारम्भ होता है।
भगवती त्रिपुर भैरवी स्वरूप
भैरवी यामल तंत्र में भगवती त्रिपुर भैरवी के स्वरूप को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है तथा साधकों को देवी का इसी मंत्र से ध्यान करना चाहिए-
उद्यद्भानु सहस्रकान्तिमरुणा क्षौमां शिरोमालिकां।
रक्तालिप्त पयोधरां जप वटीं विद्यामभीति वरम्।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसद्वक्त्रारविन्द श्रियं।
देवीं बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्दे रविन्दस्थिताम्॥
भगवती त्रिपुर भैरवी की देह कान्ति उदीयमान सहस्र सूर्यों की कांति के समान है। वे रक्त वर्ण के रेशमी वस्त्र धारण किए हुए हैं। उनके गले में मुण्ड माला तथा दोनों स्तन रक्त से लिप्त हैं। वे अपने हाथों में जप-माला, पुस्तक, अभय मुद्रा तथा वर मुद्रा धारण किए हुए हैं। उनके ललाट पर चन्द्रमा की कला शोभायमान है। रक्त कमल जैसी शोभा वाले उनके तीन नेत्र हैं। उनके मस्तक पर रत्न जटित मुकुट तथा मुख पर मन्द मुस्कान है।
वाराही तंत्र में लिखा है, कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि त्रिदेवों ने आदि काल में एक समय देवी की पूजा की थी, इसलिए इनको त्रिपुरा नाम से भी जाना जाता है।
भगवती त्रिपुर भैरवी महाभैरव की ही शक्ति हैं, उनकी मूल शक्ति होने के कारण उनसे भी सहस्र गुणा अधिक तीव्र तथा क्रियाशील हैं। साधक जिन लाभों को भैरव साधना सम्पन्न करने से प्राप्त करता है, जैसे शत्रुबाधा निवारण, वाद-विवाद मुकदमा आदि में विजय, आकस्मिक दुर्घटना टालना, रोग निवारण आदि इस साधना के माध्यम से इन विषम स्थितियों पर भी आसानी से नियंत्रण कर सकता है।
भैरव भय विनाशक हैं और त्रिपुर भैरवी को आधार बनाकर ही अपनी शक्तियों का विस्तार करते हैं। त्रिपुर भैरवी साधना की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है, कि यह प्रबल रूप से तंत्र बाधा निवारण की साधना है।
कैसा भी वशीकरण प्रयोग करवा दिया गया हो, कैसा भी भीषण तांत्रिक प्रयोग कर दिया गया हो, दुर्भावनावश वशीकरण प्रयोग कर दिया गया हो, गृहस्थ या व्यापार बन्ध प्रयोग हुआ हो, तो त्रिपुर भैरवी साधना सम्पन्न करने पर वह बेअसर हो जाता है, क्योंकि ऐसे समस्त तीक्ष्ण प्रयोगों में भैरव के जिस तीव्र स्वरूप का अवलम्बन लिया जाता है, उस पर प्रभावशाली नियंत्रण त्रिपुर भैरवी साधना के अतिरिक्त अन्य किसी साधना से संभव नहीं है।
त्रिपुर भैरवी साधना विधि
1. इस साधना में आवश्यक सामग्री त्रिपुर भैरवी यंत्र, त्रिपुर माला, त्रिशक्ति गुटिका है।
2. यह साधना किसी भी शुक्ल पक्ष की तृतीया को सम्पन्न की जा सकती है।
3. इस साधना को आप किसी भी समय कर सकते हैं, प्रातः काल में की गई यह साधना विशेष फलदायी है।
4. साधक स्नान आदि करके पूर्वाभिमुख होकर साधना सम्पन्न करें।
5. पीली धोती, पीला वस्त्र धारण करें। गुरु पीताम्बर अवश्य ओढ़ लें।
6. अपने सामने चौकी पर पीला वस्त्र बिछा लें, उस पर त्रिपुर भैरवी यंत्र और त्रिशक्ति गुटिका स्थापित करें।
7. यंत्र पर कुुंकुम की तीन बिन्दियां लगाएं तथा यंत्र का संक्षिप्त पूजन करें।
8. धूप व दीपक लगाएं, दीपक घी का होना चाहिए।
विनियोग
अस्य त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणा मूर्ति ॠषिः शक्तिश्छन्दः त्रिपुर भैरवी देवता ऐं बीज ह्रीं शक्तिः क्लीं कीलकं मम् अभीष्ट सिद्धिये जपे विनियोगः।
कर न्यास
हसरां अंगुष्ठाभ्यां नमः।
हसरीं तर्जनीभ्यां नमः।
हसरू मध्यमाभ्यां नमः
हसरै अनामिकाभ्यां नमः।
हसरौ कनिष्ठकाभ्यां नमः।
हसरः करतल करपृष्ठाभ्यां नमः।
हृदयादि षडंगन्यासः
हसरां हदयाय नमः।
हसरीं शिरसे नमः।
हसरू शिखायै वषट्।
हसरै कवचाय हुं।
हसरौ नेत्रयाय वौषट्।
हसरः अस्त्राय फट्।
ध्यान
निम्न ध्यान मंत्र से भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करें-
उद्यद्भानु सहस्रकान्तिमरुणा क्षौमां शिरोमालिकां।
रक्तालिप्त पयोधरां जप वटीं विद्यामभीति वरम्।
हस्ताब्जैर्दधतीं त्रिनेत्र विलसद्वक्त्रारविन्द श्रियं।
देवीं बद्ध हिमांशु रत्न मुकुटां वन्दे रविन्दस्थिताम्॥
ध्यान के पश्चात् त्रिपुर माला से निम्न मंत्र का 11 माला जप करें –
॥ हसैं हसकरी हसैं॥
जप समाप्ति के बाद दूध से बना भोग लगाएं अगले दिन यत्रं और गुटिका को जल में विसर्जित कर दें तथा माला सुरक्षित स्थान पर रखें दें। अगले दो महीनों की (शुक्ल पक्ष की तृतीया को) 11 माला उपरोक्त मंत्र जप त्रिपुर माला से करना चाहिये। उपरोक्त माला से केवल जप करना ही पर्याप्त है। तीन महीने में त्रिपुर भैरवी पूर्ण रूप से सिद्ध हो जाती हैं। तीन महीने पश्चात् माला को भी जल में विसर्जित कर दें।
साधना सामग्री – 440/-