अकेला ब्रह्म या अकेली माया अपने आप में पूर्णता नहीं दे सकती । शंकराचार्य ने अद्वैत सिद्धान्त की रचना की, अद्वैत का तात्पर्य है— “माया और ब्रह्म का एकाकार हो जाना ।”
डा. नारायण दत्त श्रीमाली
कुण्डलिनी यात्रा ः मुलाधार से सहस्रार तक
प्राक्कथन