Kamala Lakshmi tantrot Sadhana
जीवन की पूर्णता
‘‘धन’’
धन की पूर्णता
‘‘भगवती कमला’’
जीवन में केवल कुछ ही वस्तुएं ऐसी हैं, जिन्हें धन से नहीं खरीदा जा सकता। बाकी सारी वस्तुएं प्राप्त करने के लिए हमें धन की आवश्यकता होती है। हम सब जानते हैं कि रुपया-पैसा सब कुछ नहीं होता परन्तु कुछ भी खरीदने के लिए यही रुपया-पैसा बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।
मनुष्य को अपनी अधारभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये धन की ही आवश्यकता होती है। चाहे बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए, चाहे सामाजिक सुरक्षा के लिए, चाहे बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिये, चाहे ऐश्वर्य पूर्ण जीवन व्यापन के लिये, चाहे गृहस्थ जीवन में सुख प्राप्ति के लिये हो, ऐसी कई इच्छाएं, कामनाएं हैं जिन्हें धन के अभाव में पूर्ण नहीं किया जा सकता है।
और वर्तमान युग में तो व्यक्ति सामाज में अपनी आर्थिक हैसियत से ही जाना जाता है, आज हम एक ऐसे युग में जीवन जी रहे हैं जहां रुपयों-पैसों का महत्व काफी बढ़ गया है। हम सब इस बदलाव से ज्यादा समय तक अछुते नहीं रह सकते है। अपनी आंखें बदं कर लेने से अंधेरा नहीं हो जाता। हम अपने आप को दीन-दुनिया से अलग भी नहीं रख सकते। पैसा सुख तो नहीं पर सुख का साधन है, इस बात को हमें स्वीकार करना ही पड़ेगा।
आज हम देखते हैं कि – जिस इन्सान के पास धन की कमी होती है तो उसकी सामजिक इज्जत में भी कमी आ जाती है। आज हमें जरूरत है अपने अन्दर बदलाव लाने की जिससे कि हम समय के साथ आगे बढ़ सकें। यहां एक बात को समझना बहुत आवश्यक है कि हमारे ग्रंथों ने तो इस बात को बहुत पहले ही बता दिया था, हां एक बात जरूर यह हुई कि – हमने अपने ग्रंथों को भुला दिया। आज धन के महत्व को समझने से भी ज्यादा आवश्यक है, अपने प्राचीन ज्ञान को समझना, जिससे वर्तमान समय में धन की कमी को लेकर हमें दुःखी नहीं होना पड़े।
चाणक्य ने तो स्पष्ट कहा है कि –
त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं
पुत्राश्च दाराश्च सुहज्जनाश्च।
तमर्शवन्तं पुराश्रयन्ति अर्थो
हि लोके मनुषस्य बन्धुः॥
निर्धन हो जाने पर मनुष्य को पत्नी, पुत्र, मित्र, निकट सम्बन्धी, नौकर और हितैषी जन सभी छोड़कर चले जाते हैं और जब पुन: धन प्राप्त हो जाता है तो फिर से उसी के आश्रय में आ जाते हैं।
शास्त्रों में भी ‘धर्मार्थ काम मोक्षाणां पुरुषार्थ चतुष्टयम्’ कहकर मनुष्य की उन्नति के लिए चार प्रकार के पुरुषार्थ बतायें हैं, जिसमें सबसे पहला पुरुषार्थ धर्म, दूसरा अर्थ (लक्ष्मी प्राप्ति), तीसरा काम (सन्तान उत्पन्न करना) और चौथा मोक्ष प्राप्ति के लिए साधना आदि सम्पन्न करना है।
लक्ष्मी से सम्बन्धित उपासना हमारे जीवन की आवश्यक उपासना है। हम चाहें किसी मत के अनुयायी हों, किसी भी धर्म का पालन करते हों, किसी भी विचारधारा से सम्बन्धित हों पर हमें लक्ष्मी प्राप्ति और उसके महत्व को स्वीकार करना ही पड़ेगा।
बिना धन के धर्म का अस्तित्व संभव ही नहीं। इसीलिए धन की महत्ता सर्वोपरि है और यह महत्ता मानव के प्रारम्भिक काल से आज तक रही है। इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है, कि व्यक्ति को श्री-सम्पन्न होना चाहिए, श्रीसम्पन्न व्यक्ति ही समाज और देश के आभूषण हैं।
* घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास होने से राजकीय उन्नति एवं अनुकूलता मिलती है। कैसी भी शत्रु बाधा हो या कार्यों में कोई अड़चन आ रही हो, तो लक्ष्मी की कृपा से निश्चय ही सफलता एवं विजय ही हाथ लगती है।
* लक्ष्मी-कृपा से ही वीरता, उत्साह एवं आत्मविश्वास प्राप्त होता है, तभी व्यक्ति के लिए ब्रह्मत्व प्राप्ति एवं ईश्वर दर्शन सम्भव हो पाता है।
* जीवन में नवीन चेतना एवं उमंग के लिए लक्ष्मी की कृपा नितान्त आवश्यक है। लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति जीवन में उन्नति कर अपने तथा अपने परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा करने में पूर्ण रूप से समर्थ हो पाता है, भगवती लक्ष्मी की कृपा से ही पूर्ण भौतिक समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। योग्य तथा आज्ञाकारी सन्तान प्राप्त होना भी भगवती लक्ष्मी की ही कृपा पर निर्भर होता है।
इसके लिए लक्ष्मी के मूल स्वरूप भगवती कमला की साधना करना, प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यन्त आवश्यक है। जहां आज प्रत्येक व्यक्ति की सम्पूर्ण भाग-दौड़ का केन्द्र बिन्दु लक्ष्मी प्राप्ति ही है, वहां कमला साधना सम्पन्न करना आवश्यक हो जाता है। मनुष्य के अतिरिक्त देवता भी देवकार्यों के सम्पादन हेतु लक्ष्मी की आराधना करते हैं। इन्द्र भी भगवती लक्ष्मी की कृपा पर आश्रित हैं। जगत के पालनकर्त्ता भगवान विष्णु भी लक्ष्मी के सहयोग से ही कार्य करते हैं।
दरिद्रता एवं दुःख को यदि जड़ से उखाड़ फेंकना हो, तो श्रावण मास की हरियाली अमावस्या (23 जुलाई 2017) को कमला तंत्र वर्णित लक्ष्मी के मूल स्वरूप की ‘कमला साधना’ अवश्य सम्पन्न करें। इस साधना को जो भी साधक श्रेष्ठ मुहूर्त में पूर्ण विधि-विधान से करता है, उसके जीवन की दरिद्रता समाप्त हो जाती है और उसका दुर्भाग्य, सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है।
कमला यंत्र
तांत्रोक्त कमला साधना का मुख्य आधार कमला यंत्र ही है क्योंकि यह पूर्ण रूप से प्रभाव युक्त और सिद्धिदायक है। कमला तंत्र में यंत्र के बारे में बताया है, कि यह पूर्ण विधि के साथ षट्कोण सहित अष्टदलों युक्त यंत्र हो –
अनुक्तकल्पे यंत्रस्तु बलखेत्पद्मन्दलाष्टकम्।
षट्कोणकर्णिकतंत्र वेद्वाररोपशोभितम्॥
यह यंत्र ताम्र पत्र पर अंकित हो, साथ ही साथ कमला तंत्र में बताया गया है कि जब तक तंत्रोद्धार सम्पन्न यंत्र न हो तो उसका प्रभाव नहीं होता, तंत्रोद्धार में बारह तथ्य स्पष्ट किये गये हैं, बताया गया है कि इन तत्वों को सम्पन्न करके ही यंत्र का प्रयोग करना चाहिए।
कमला तंत्र के अनुसार
1. कमला यंत्र विजय काल में अंकित किया जाना चाहिए।
2. इसका पूर्ण रूप से मंत्रोद्धार हो।
3. यह वाग् बीज से सम्पुटित हो।
4. लज्जा बीज के द्वारा इसका अभिषेक हो।
5. श्रीं बीज के द्वारा यह यंत्र सिद्ध हो।
6. काम बीज के द्वारा यह वशीकरण युक्त हो।
7. पद्म बीज के द्वारा यह प्रभाव युक्त हो।
8. जगत् बीज के द्वारा यह आकर्षण युक्त हो।
9. रुद्र बीज के द्वारा वह शौर्य-वीर्य युक्त हो।
10. मनु बीज के द्वारा मन पर नियंत्रण प्रदान करने वाला हो।
11. ऐं बीज के द्वारा वैभव प्रदायक हो।
12. रमा बीज के द्वारा सिद्धि प्रदायक हो।
तारं पूर्व लिखित्वा परमलमलं वाग्भवं
बीजमन्य ल्लज्जा श्रीं बीज-पूर्ववश-
करण-तमं काम-बीजं परस्तात्।
ह् सौः पश्चाद् जनीयंनसूयुतमघः जगत्
पूर्विकायः प्रसूत्या हेन्तं रूपं तमोत्तं
निखिल-मनु- विदुर्मन्त्रमुक्तं रमायाः॥
वास्तव में ही कमला यंत्र पूर्ण रूप से सिद्ध करना पेचीदा और श्रम साध्य कार्य है। इस प्रकार का यंत्र पूजा स्थान में स्थापित कर साधना प्रारम्भ करें। ऐसा यंत्र, जहां साधक के स्वयं के जीवन के लिए तो सौभाग्यदायक रहेगा ही, आने वाली कई-कई पीढ़ियों के लिए भी यह यंत्र भाग्योदयकारक बना रहेगा।
लक्ष्मी सिद्धि – कमला तंत्र
कमला साधना
वास्तव में लक्ष्मी की साधना तंत्र मार्ग से ही संभव है, और यह कमला साधना के द्वारा सहज संभव है। कमला तंत्र में तो स्पष्ट रूप से लिखा है कि जीवन में अतुलनीय धन-वैभव प्राप्त करने के लिए कमला साधना आवश्यक है, क्योंकि इस साधना के द्वारा ही जीवन में वह सब कुछ प्राप्त हो सकता है, जो कि आज के युग में मनुष्य को चाहिए।
सबसे बड़ी बात यह है, कि कमला साधना एक ओर जहां पूर्ण मानसिक शांति और सिद्धि प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर इसके माध्यम से अतुलनीय वैभव और अनायास धन प्राप्ति होती रहती है, तंत्र में इसके द्वादश नाम स्पष्ट हुए हैं, यदि कोई साधक केवल इन द्वादश नामों का उल्लेख या उच्चारण ही नित्य कर लेता है, तो भी उसे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो जाती है, फिर यदि कोई श्रावण मास, पुरुषोत्तम मास, कार्तिक मास, नवरात्रि या अन्य किसी शुभ मुहूर्त में एक बार भली प्रकार से कमला साधना सम्पन्न कर लेता है, तो उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव रह ही कैसे सकता है?
कमला के द्वादश नाम निम्नवत् हैं – 1. महालक्ष्मी, 2. ॠणमुक्ता, 3. हिरण्मयी, 4. राजतनया, 5. दारिद्र्य हारिणी, 6. कांचना, 7. जया, 8. राजराजेश्वरी, 9. वरदा, 10. कनकवर्णा, 11. पद्मासना, 12. सर्वमांगल्य युक्ता।
साधना विधान
शास्त्रों में इस साधना को प्रातः काल सम्पन्न करना श्रेष्ठ बताया गया है। विविधत् मुहूर्तों के अनुसार समय परिवर्तित भी हो सकता है। साधना प्रारम्भ करने से पूर्व साधना सामग्री – कमला यंत्र, द्वादश ज्योतिर्रत्न, कमल गट्टे की माला और पूजन सामग्री – जलपात्र, केसर, अष्टगंध, अक्षत, नारियल, फल, दूध का बना प्रसाद, पुष्प आदि अपने सामने रख दें। कमला साधना में अष्टगंध का प्रयोग ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है, अतः साधकों को चाहिए कि वे पहले से ही अष्टगंध प्राप्त कर उसे घोल कर अपने सामने रख लें।
कमला तंत्र के अनुसार साधना वाले दिन साधक स्नान, ध्यान कर पीले वस्त्र धारण कर पीले आसन पर उत्तर दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं और अपने सामने एक बाजोट पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर लक्ष्मी चित्र स्थापित कर दें। लक्ष्मी चित्र के समीप ही गुरु चित्र स्थापित कर, गुरु चित्र का पंचोपचार पूजन कर लें। गुरु पूजन के पश्चात् कमला साधना में आगे का पूजन क्रम निम्न अनुसार है –
पूजन के इस क्रम में सर्वप्रथम ‘मंत्र सिद्ध प्राणप्रतिष्ठा युक्त कमला यंत्र’ को शुद्ध जल से धो लें। इसके पश्चात् कमला यंत्र को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) से स्नान करायें। पंचामृत स्नान के पश्चात् पुनः शुद्ध जल से धोकर लक्ष्मी चित्र के सम्मुख रख दें।
इसके पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर नवग्रहों की शांति हेतु प्रार्थना करें –
नवग्रह प्रार्थना –
ॐ ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुधश्च गुरुश्च शुक्रः शनि राहुकेतवः सर्वेग्रहाः शांतिकरा भवन्तु॥
नवग्रह प्रार्थना के पश्चात् एक थाली में नया पीला वस्त्र बिछाकर उसे बाजोट पर रख दें, कपड़े के ऊपर सिन्दूर से सोलह बिन्दियां लगावें। सबसे ऊपर चार फिर उनके नीचे चार-चार बिन्दियां चार पक्तियों में, इस प्रकार कुल 16 बिन्दियां लगा कर प्रत्येक बिन्दी पर एक-एक लौंग तथा एक-एक इलायची रख कर फिर इनका अष्टगंध से पूजन करें और हाथ जोड़ कर निम्न ध्यान मंत्र का उच्चारण करें –
उद्यन्मार्तण्ड-कान्ति-विगलित
कवरीं कृष्ण वस्त्रवृतांगाम्।
दण्डं लिंगं कराब्जैर्वरमथ
भुवनं सन्दधतीं त्रिनेत्राम्॥
नाना रत्नैर्विभातां स्मित-मुख
-कमलां सेवितां देव-देव-सर्वै
र्भार्यां रा ज्ञीं नमो भूत स-रवि-कल
-तनुमाश्रये ईश्वरीं त्वाम्॥
जो साधक संस्कृत पढ़े लिखे नहीं हैं, उनको चिंता नहीं करनी चाहिए और धीरे-धीरे शब्द उच्चारण करते हुए यह ध्यान मंत्र पढ़ सकते हैं।
इसके बाद मंत्र सिद्ध प्राण प्रतिष्ठिायुक्त ‘कमला यंत्र’ पीले वस्त्र पर जिसमें सोलह बिन्दियां लगाई हैं, उसी पर पूर्ण श्रद्धा के साथ पुष्पों का आसन देकर स्थापित करें और अष्टगंध से इस यंत्र पर सोलह बिन्दियां लगा दें।
इसके पश्चात् कमला यंत्र के चारों ओर लक्ष्मी के द्वादश स्वरूप द्वादश ज्योतिर्रत्न का स्थापन करें। ये लक्ष्मी के महालक्ष्मी, ॠणमुक्ता, हिरण्मयी, राजतनया, दारिद्र्य हारिणी, कांचना, जया, राजराजेश्वरी, वरदा, कनकवर्णा, पद्मासना, सर्वमांगल्या द्वादश रूपों के प्रतीक हैं। कमला की इन द्वादश शक्तियों का पूजन अक्षत, कुंकुम, पुष्प इत्यादि से निम्न मंत्रों का उच्चारण करते हुए करें –
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं महालक्ष्मी स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं ॠणमुक्ता स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं हिरण्मयी स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं राजतनया स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं दारिद्र्य हारिणी स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं कांचना स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं जया स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं राजेश्वरी स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं वरदा स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं कनकवर्णा स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं पद्मासना स्थापयामि नमः।
ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं सर्वमांग्ल्या स्थापयामि नमः।
इसके बाद दोनों हाथों में पुष्प तथा अक्षत लेकर निम्न मंत्र से अपने घर में भगवती कमला का आह्वान करते हुए यंत्र पर पुष्प, अक्षत समर्पित करें –
आह्वान मंत्र
ॐ ब्रह्मा ॠषये नमः शिरसि। गायत्रीश्छन्दसे नमः मुखे। श्री जगन्मातृ महालक्ष्म्यै देवतायै नमः हृदि। श्रीं बीजाय नमः गुह्ये। सर्वेष्ट सिद्धये मम धनाप्तये ममाभीष्टप्राप्तये जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
इसके बाद साधक सामने शुद्ध घृत का दीपक जलाएं, उसका पूजन करें तत्पश्चात् सुगन्धित अगरबत्ती प्रज्वलित करें, ऐसा करने के बाद साधक इस यंत्र पर कुंकुम समर्पित करें, पुष्प तथा पुष्प माला पहनाएं, अक्षत चढ़ावें तथा नैवेद्य का भोग लगावें, सामने ताम्बूल, फल और दक्षिणा समर्पित करें।
भगवती कमला के आह्वान और पूजन के पश्चात् इस साधना में ‘कवच’ पाठ का विधान है। इस दुर्लभ कवच का पांच बार पाठ करें, जो महत्वपूर्ण है, कवच पाठ से यंत्र का साधक के प्राणों से सीधा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है, और साधना सम्पन्न करने पर साधक को ओज, तेज, बल, बुद्धि तथा वैभव प्राप्त होने लग जाता है।
इस कवच का उच्चारण सनत्कुमार ने भगवती लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया था। कमला उपनिषद् में इस लघु कवच का अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रयोग है –
कमला कवच
ऐंकारी मस्तके पातु वाग्भवी सर्व सिद्धिदा।
ह्रीं पातु चक्षुषोर्मध्ये चक्षु युग्मे च शांकरी।
जिह्वायां मुख-वृत्ते च कर्णयोर्दन्तयोर्नसि।
ओष्ठाधरे दन्त पंक्तौ तालु मूले हनौ पुनः॥
पातु मां विष्णु वनिता लक्ष्मीः श्री विष्णु रूपिणी।
कर्ण-युग्मे भुज-द्वये-रतन-द्वन्द्वे च पार्वती॥
हृदये मणि-बन्धे च ग्रीवायां पार्श्वयोर्द्वयोः।
पृष्ठदेशे तथा गृह्ये वामे च दक्षिणे तथा॥
स्वधा तु-प्राण-शक्त्यां वा सीमन्ते मस्तके तथा।
सर्वांगे पातु कामेशी महादेवी समुन्नतिः॥
पुष्टिः पातु महा-माया उत्कृष्टिः सर्वदावतु।
ॠद्धिः पातु सदादेवी सर्वत्र शम्भु-वल्लभा॥
वाग्भवी सर्वदा पातु, पातु मां हर-गेहिनी।
रमा पातु महा-देवी, पातु माया स्वराट् स्वयं॥
सर्वांगे पातु मां लक्ष्मीर्विष्णु-माया सुरेश्वरी।
विजया पातु भवने जया पातु सदा मम॥
शिव-दूती सदा पातु सुन्दरी पातु सर्वदा।
भैरवी पातु सर्वत्र भैरुण्डा सर्वदावतु॥
पातु मां देव-देवी च लक्ष्मीः सर्व-समृद्धिदा।
इति ते कथितं दिव्यं कवचं सर्व-सिद्धये॥
वास्तव में ही यह कवच जो कि ऊपर स्पष्ट किया गया है अपने आप में महत्वपूर्ण है, यदि साधक नित्य इसके ग्यारह पाठ करता है, तो भी उसे जीवन में धन, वैभव, यश सम्मान प्राप्त होता रहता है।
प्रयोग में इसके पांच पाठ करें। कमला कवच के पाठ के पश्चात् ‘कमल गट्टा माला’ का कुंकुम, अक्षत, पुष्प इत्यादि से पूजन करें और पूजन के पश्चात् ‘कमल गट्टा माला’ से निम्न कमला मंत्र की 16 माला मंत्र जप करें।
कमला मंत्र
॥ ॐ ऐं ईं हृीं श्रीं क्लीं ह् सौः जगत्प्रसूत्यै नमः॥
जब सोलह माला मंत्र जप हो जाय तब भगवती लक्ष्मी की विधि-विधान के साथ आरती सम्पन्न करें और उस यंत्र, माला एवं द्वादश ज्योतिर्रत्न को पूजा स्थान में रख दें।
सवा माह पश्चात् दक्षिणा सहित सम्पूर्ण साधना सामग्री को जल में विसर्जित कर दें।