ब्रम्हाण्ड का नियन्त्रण करने वाले पुरूष-तत्व प्रतिरूपों
अर्थात त्रिदेवों में विष्णु को पालनकर्ता कहा जाता है। उन्हीं जगत-पालक
विष्णु की शक्ति को लक्ष्मी की संज्ञा दी गई है। विष्णु-पत्नी के रूप में
लक्ष्मी उनके साथ सर्वत्र पूजित हैं। कहीं भी चित्रों में अथवा मूत्तियों
में देखें तो हमें लक्ष्मी-विष्णु अथवा लक्ष्मी-नारायण की युगल छवि दिखाई
देगी। सही भी है कि जो देवता पालन करते हैं, उसकी शक्ति (पत्नी) अवश्य ही
भौतिक वस्तुओं की समृद्धि से सम्पन्न होगी। मानव-जाति के पालन-पोषण में जो
कुछ भी अन्न, वस्त्र, धन आदि प्रयुक्त होते हैं। इस प्रसंग में यह भी स्मरण
रखना चाहिए कि तीनों देवता (ब्रम्हा, विष्णु, महेश) उस व्यक्ति (साधक) पर
विशेष कृपालु होते हैं, जो उन्हें उनकी शक्तियों (सरस्वती, लक्ष्मी, गौरी)
के साथ स्मरण करता है। वैसे, किसी भी देवी की साधना करके उसके देवता की, और
किसी भी देवता की साधना करके उसकी देवी की कृपा भी प्राप्त की जा सकती है,
तथापि सरलतम और संगत विधान यही माना जाता है कि अभीष्ट देवी-देवताओं की
युगल रूप में आराधना करनी चाहिए। इसका प्रभाव विशेष रूप से अधिक और अनुकूल
पाया जाता है। अत: लक्ष्मी उपासकों के लिए लक्ष्मी के साथ विष्णु का
स्तवन-पूजन विशेष लाभकर माना जाता है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि लक्ष्मी किन-किन स्थानों पर निवास करती है।
जो व्यक्ति महाशक्ति माहेश्वरी के सबसे प्रिय शास्त्र देवीभागवत् का पाठ विधिवत नियमित रूप से करें या विद्वानों के द्वारा करायें एवं श्रवण करें उसके घर में लक्ष्मी सदैव निवास करती है।
जो व्यक्ति मधुर बोलने वाला, अपने कार्य में तत्पर, क्रोधहीन, ईश्वर भक्त, अहसान मानने वाला, इन्द्रियों को नियन्त्रण में रखने वाला तथा उदार हो उसके यहां लक्ष्मी निवास करती है।
जो व्यक्ति अपने घर में कमलगट्टे की माला, एकाक्षी नारियल,
श्वेतार्क गणपति, दक्षिणावर्ती शंख, पारद शिवलिंग व श्रीयंत्र की स्थापना
किसी विद्वान आचार्य के द्वारा अभिमंत्रित एवं विधिवत पूजा के अनुसार
करवाता है उसके घर में अचल लक्ष्मी सदैव निवास करती है। सदाचारी, धर्मज्ञ,
अपने माता-पिता की भक्ति भावना से सेवा करने वाले, नित्य पुण्य प्राप्त
करने वाले, बुद्धिमान, दयावान तथा गुरू की सेवा करने वाले व्यक्तियों के घर
में अवश्य ही लक्ष्मी निवास करती है।
जिस व्यक्ति के घर में यज्ञ, अनुष्ठान, देवजप, महाशक्ति माहेश्वरी की पूजा व
सुबह-शाम की आरती नियमित रूप से होती है, उसके घर में लक्ष्मी सदैव निवास
करती है।
जो स्त्री नियमित रूप से गाय की पूजा करती हो अथवा गोग्रास निकालती हो उस पर लक्ष्मी की विशेष दया रहती है।
जिसके घर में पशु-पक्षी निवास करते हों, जिसकी पत्नी सुन्दर हो, जिसके घर में कलह नहीं होती हो, उसके घर में निश्चय ही लक्ष्मी रहती है।
जिसके घर में मन्त्र सिद्ध श्रीयंत्र, कनकधारा यंत्र, कुबेर यंत्र स्थापित हों, उनके घर में लक्ष्मी पीढि़यों तक निवास करती है।
जो अनाज का सम्मान करते हैं और घर में आये हुये अतिथि का, घर
वालों के समान ही स्वागत सत्कार करते हैं उसके घर में लक्ष्मी स्थिर रूप से
रहती हैं।
जो व्यक्ति असत्य भाषण नहीं करता, अपने विचारों में डूबा नहीं रहता, जिसके जीवन में घमण्ड नहीं है,
जो दूसरों के प्रति प्रेम प्रदर्शित करता है, जो दूसरों के दु:ख में दु:खी
होकर उसकी सहायता करता है और जो दूसरों के कष्ट को दूर करने में आनन्द
अनुभव करता है उसके घर में अवश्य ही लक्ष्मी निवास करती है।
जो नित्य स्त्रान करता है, सुरूचि पूर्ण स्वच्छ वस्त्र धारण करता है, शीघ्र
भोजन करता है, बिना सूंघे पुष्प देवताओं पर चढ़ाता है, जो दूसरी स्त्रयों
पर कुदृष्टि नहीं रखता, उसके घर में लक्ष्मी रहती है।
जो यथा सम्भव दान देता है शुद्ध और पवित्र बना रहता है, गरीबों की सहायता करता है, उसके घर में अवश्य ही लक्ष्मी निवास करती है। आंवले के वृक्ष के फल में, गाय के गोबर में, शंख में, कमल में और श्वेत वस्त्र में लक्ष्मी सदैव रहती है।
जिसके घर में नित्य उत्सव होता है, जो भगवान शिव की पूजा करता है, जो घर में देवताओं के सामने धूप व दीपक जलाता है, जो अपने गुरू को ईश्वर के समान समझकर पूजा करता है उसके घर में लक्ष्मी निवास करती है।
जो स्त्री पति का सम्मान करती है, पति की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करती, घर में सबको भोजन कराकर, फिर भोजन करती है। उसी स्त्री के घर में सदैव लक्ष्मी का निवास रहता है। प्रसन्न चित्त, मधुर बोलने वाली, सौभाग्यशालिनी, रूपवती सुन्दर और सुरूचिपूर्ण वस्त्र धारण किये रहने वाली, प्रियदर्शना और पतिव्रता स्त्री के घर में लक्ष्मी का निवास रहता है।
जो स्त्री सुन्दर, हिरनी के समान नेत्र वाली, सुन्दर केश श्रृंगार करने वाली, धीरे चलने वाली और सुशील हो, उसके घर में लक्ष्मी निवास करती है।
जिस पुरूष के दोनों पैर शुद्ध व चिकने होते हैं, जो अत्यल्प भोजन करता है, जो पवित्र पर्व के दिनों में मैथुन परित्याग करता है, उसके घर में निश्चित रूप से लक्ष्मी निवास करती है।
जो व्यक्ति अपवित्र नहीं रहता, मैले वस्त्र धारण नहीं करता है, शरीर को दुर्गन्धयुक्त नहीं बनाता, चित्त में चिन्ता या दुख नहीं रखता, उसके घर में नित्य ही लक्ष्मी निवास करती है।
जो व्यक्ति सूर्य उदय से पहले उठकर स्त्रान कर लेता है, जो सूर्यास्त से पहले स्त्रान कर पवित्र होता है।
जो विरूद्ध आचरण नहीं करता, पराई स्त्री से संगम नहीं करता, दूसरों के धन
में मन नहीं लगाता, किसी का अनिष्ट चिंतन नहीं करता वह लक्ष्मी का प्रिय बन
जाता है।
जो ब्रम्ह मुहूर्त मे उठकर स्त्रानादि कर संध्या करता है, दिन
में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुंह करके मल-मूत्र त्याग
करता है वह लक्ष्मीवान होता है।
जो कुटिल आचरण नहीं करता, पुन: अकारण बार-बार स्त्रान नहीं करता, सत्य और
मधुर वाणी का प्रयोग करता है। लक्ष्मी के सर्वथा निवास के लिए व्यक्ति को
देवता, साधु, ब्राम्हण और गुरू में आस्था अवश्य रखनी चाहिए।
जो संयमी स्थिरचित्त और मौन रहकर भोजन करता है उसके घर में अवश्य ही लक्ष्मी बनी रहती है।
जो व्यक्ति गयाधाम में, कुरूक्षेत्र में, काशी में अथवा सागर संगम में स्त्रान करता है, वह निश्चय ही लक्ष्मी युक्त रहता है।
जो व्यक्ति एकादशी तिथि को भगवान विष्णु को आँवला फल भेंट करता है, जल में आवंला डालकर स्त्रान करता है वह लक्ष्मी युक्त बना रहता है।
वेद, पुराण स्मृति एंव तंत्रशास्त्रों में अनेक विद्या मंत्रों का निर्देश हुआ है। कुछ मंत्रों का संकेत उत्तर काल के विद्वानों आचार्यो ने अपने अनुभव के आधार पर भी किया है। जिसमें से कुछ अति दुर्लभ मंत्रों का व्याख्यान अति व्यवहारिक भाषा में माता लक्ष्मी के भक्तों के लिए में बताने का प्रयास कर रहा हूँ-गुरू और शिष्य का एक मधुर और पवित्र सम्बन्ध होता है। गुरू के प्रति साधक की जैसी भावना होती है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है।
मंत्रे तीर्थे द्विजे जेवे दैवज्ञे भेषजे गुरौ।
यादृशी भावना यस्य सिद्धिर्भवति तादृशी।।
अर्थात तीर्थ, ब्राम्हण, देवता, ज्योतिषी, दवा तथा गुरू में जिस प्रकार की जिसकी भावना होती है, उसके अनुसार ही उसे सिद्धि प्राप्त होती है।
कुछ मंत्र भी आर्थिक उन्नति के लिए अनुकूल है, परन्तु इस मंत्र में साधक को नित्य एक माला फेरनी आवश्यक है और मात्र ग्यारह दिन में ही यह मंत्र सिद्ध किया जा सकता है। शास्त्रीय ग्रंथों में इस मंत्र की विशेष प्रशंसा की गई है और कहा गया है कि लक्ष्मी जी के जितने भी मंत्र हैं उन सबमें इस मंत्र को श्रेष्ठ और अद्भुत तथा सफलतादायक बताया गया है। इस मंत्र का जप करने से पूर्व सामने थाली में चावल के ढेरी बनाकर उस पर कनकधारा यंत्र स्थापित करना चाहिए। यह यंत्र अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है और इस यंत्र से यह यंत्र ज्यादा संबंध रखता है, अत: इस यंत्र के सामने ही मंत्र का प्रयोग करने पर सफलता मिलती है। यह कनकधारा यंत्र धातु निर्मित मंत्रसिद्ध प्राण-प्रतिष्ठा युक्त होना चाहिए और अनुष्ठान करने से पूर्व ही इसे प्राप्त कर घर में स्थापित कर लेना चाहिए, स्थापित करने के लिए किसी विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं होती। प्रयोग समाप्त होने पर माला को नदी में प्रवाहित कर दें।
।।ॐ श्रीं ह्वीं क्लीं श्रीं लक्ष्मीरागच्छागच्छ मम मन्दिरे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ।।
यह 22 अक्षरों का मंत्र लक्ष्मी का अत्यंत प्रिय मंत्र है और लक्ष्मी ने स्वयं ब्रम्हर्षि वशिष्ठ को यह बताया था और कहा था, कि यह मंत्र मुझे सभी दृष्टियों से प्रिय है और जो इस मंत्र का एक बार भी उच्चाारण कर लेता है, मैं उसके घर में स्थापित हो जाती हूँ।
धन-वैभव पाने का मंत्र
घर से दरिद्रता मिटाने और आर्थिक उन्नति के लिए इस मंत्र के मुकाबले में अन्य कोई मंत्र नहीं है।
त्रैलोक्यपूजिते देवि कमले विष्णुवल्लभे।
यथा त्वमचला कृष्णे तथा भव मयि स्थिरा।।
कमला चंचला लक्ष्मीश्चला भूतिर्हरिप्रिया।
पद्मा पद्मालया सम्यगुच्चौ: श्री पद्मधारिणी।।
द्वादशैतानि नाममि लक्ष्मी संपूज्य य: पठेत्।
स्थिरा लक्ष्मीर्भवेत्तस्य पुत्रदारादिभि: सह।।
इस मंत्र का केवल एक जप ही पर्याप्त होता है, दीपावली की रात्रि को यदि दक्षिणावर्ती शंख के सामने इस स्तोत्र का 101 बार जप कर दिया जाय तो उसकी मनोवांछित कामना अवश्य ही पूरी हो जाती है। इस शंख में जल भर कर स्तोत्र का मात्र 11 बार जप कर उस जल को घर में छि़डकने पर घर में शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। यदि दक्षिणावर्ती शंख पर इस स्तोत्र का नित्य 21 बार जप तथा यह प्रयोग 11 दिन तक करें तो व्यापार में विशेष अनुकूता प्राप्त होती है तथा उसे मनोवांछित फल प्राप्त होता है। यदि पांच दिन तक नित्य शंख में जल भर कर इस स्तोत्र के 11 पाठ करके उस जल को दुकान के दरवाजे के आगे छि़डक दिया जाये तो उस दुकान की बिक्री बढ़ जाती है।
प्रयोग समाप्त पर शंख को तिजोरी में स्थापित कर देना चाहिए। इस प्रयोग को प्रत्येक गृहस्थ व्यक्ति को अपनाना चाहिए। दीपावली की रात्रि में लाल वस्त्र धारण कर लाल रंग के ऊनी आसन पर दक्षिण मुख होकर बैठें, सामने लाल वस्त्र पर तांबे के पात्र में तांत्रोक्त ढंग से चैतन्य की गई बिल्ली की नाल (जेर) को पूरी तरह से तेल मिश्रित सिंदूर में रख दें तथा मूंगे की माला से मंत्र का ग्यारह माला मंत्र जप करें-
मंत्र - ।।ॐ ह्रीं ह्रीं क्लीं नानोपलक्ष्मी श्रीं पद्मावती आगच्छ आगच्छ नम:।।
उपरोक्त मंत्र अत्यन्त तीव्र एवं पूर्णत: तांत्रोक्त मंत्र है और इतना अधिक तीव्र है कि प्राय: साधक को सुबह होते-होते अपनी समस्या का हल मिल जाता है। साधक इस साधना में दृढ़ता पूर्वक और बिना किसी भय के साधना रत रह सकता है। मंत्र जप के उपरान्त रात्रि-शयन उसी स्थान पर करें और स्वप्न में अपने आकस्मिक संकट का कोई न कोई उपाय प्राप्त होता ही है। सम्पूर्ण पूजन काल में तेल का दीपक जलता रहे और वह सुबह तक प्रज्वलित रहे, इस बात का ध्यान रखें बिल्ली की नाल को किसी पात्र में बंद करके रखना है। भविष्य में जब-जब आकस्मिक धन की तीव्र आवश्यकता आ पडे़ तब-तब प्रयोग को दोहरायें। सफलता अवश्य आपके हाथ लगेगी।
लक्ष्मी आदि शक्ति का वह रूप है, जो संसार को भौतिक सुख प्रदान करती हैं अर्थात वैभव, विलास, सम्पन्नता, अर्थ, द्रव्य, रत्न तथा धातुओं की अधिष्ठात्री देवी को लक्ष्मी कहते हैं। इस देवी के व्यापक प्रभाव-क्षेत्र को देखकर ही कहा गया है लक्ष्मी के साथ लक्ष गुण रहते हैं।
आज के युग में हर व्यक्ति अतिशीघ्र समृद्ध बनना चाहता हैं। धन प्राप्ति हेतु प्राण-प्रतिष्ठित कनकधारा यंत्र के सामने बैठकर कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से विशेष लाभ प्राप्त होता हैं। इस कनकधारा यंत्र कि पूजा अर्चना करने से ऋण और दरिद्रता से शीघ्र मुक्ति मिलती हैं। व्यापार में उन्नति होती हैं, बेरोजगार को रोजगार प्राप्ति होती हैं।
श्री आदि शंकराचार्य द्वारा कनकधारा स्तोत्र कि रचना कुछ इस प्रकार कि हैं, जिसके श्रवण एवं पठन करने से आस-पास के वायुमंडल में विशेष अलौकिक दिव्य उर्जा उत्पन्न होती हैं। ठिक उसी प्रकार से कनकधारा यंत्र अत्यंत दुर्लभ यंत्रो में से एक यंत्र हैं जिसे मां लक्ष्मी कि प्राप्ति हेतु अचूक प्रभावा शाली माना गया हैं।
कनकधारा यंत्र को विद्वानो ने स्वयंसिद्ध तथा सभी प्रकार के ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ माना हैं। जगद्गुरु शंकराचार्य ने दरिद्र ब्राह्मण के घर कनकधारा स्तोत्र के पाठ से स्वर्ण वर्षा कराने का उल्लेख ग्रंथ शंकर दिग्विजय में मिलता हैं।
कनकधारा मंत्र:-
।। ॐ वं श्रीं वं ऐं ह्रीं-श्रीं क्लीं कनक धारयै स्वाहा ।।
श्री कनकधारा स्तोत्र का रोज बुधवार से सवेरे एक पाठ करे तो समस प्रकार का आर्थिक बाधा 3-4 महीने मे समाप्त होता है।
श्री कनकधारा स्तोत्र:
ॐ अंगहरे पुलकभूषण माश्रयन्ती भृगांगनैव मुकुलाभरणं तमालम ।
अंगीकृताखिल विभूतिरपांगलीला मांगल्यदास्तु मम मंगलदेवताया:।।1।।
मुग्ध्या मुहुर्विदधती वदनै मुरारै: प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकर विमहोत्पले या सा मै श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया:।।2।।
विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि। ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धमिन्दोवरोदर सहोदरमिन्दिराय:।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्। आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजंगरायांगनाया:।।4।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभै या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति। कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला कल्याण भावहतु मे कमलालयाया:।।5।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्। मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्तिभद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया:।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्मांगल्य भाजि: मधुमायनि मन्मथेन। मध्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्द्ध मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया:।।7।।
दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम स्मिभकिंचन विहंग शिशौ विषण्ण। दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह:।।8।।
इष्टा विशिष्टमतयो पि यथा ययार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभंते। दृष्टि: प्रहूष्टकमलोदर दीप्ति रिष्टां पुष्टि कृषीष्ट मम पुष्कर विष्टराया:।।9।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज भामिनीति शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति। सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।
श्रुत्यै नमोस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै रत्यै नमोस्तु रमणीय गुणार्णवायै। शक्तयै नमोस्तु शतपात्र निकेतानायै पुष्टयै नमोस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै।।11।।
नमोस्तु नालीक निभाननायै नमोस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै । नमोस्तु सोमामृत सोदरायै नमोस्तु नारायण वल्लभायै।।12।।
सम्पतकराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि। त्व द्वंदनानि दुरिता हरणाद्यतानि मामेव मातर निशं कलयन्तु नान्यम्।।13।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि: सेवकस्य कलार्थ सम्पद:। संतनोति वचनांगमानसंसत्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।।14।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते धवलमांशुकगन्धमाल्यशोभे। भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।15।।
दग्धिस्तिमि: कनकुंभमुखा व सृष्टिस्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम। प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम्।।16।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:। अवलोकय माम किंचनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया : ।।17।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्। गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते बुधभाविताया:।।18।।