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तंत्र के दिव्य प्रयोग माँ बगला का ध्यान मंत्र

तंत्र के दिव्य प्रयोग माँ बगला का ध्यान मंत्र

तंत्र के दिव्य प्रयोग

माँ बगला का ध्यान मंत्र- ॐ सौवर्णा सनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लासिनीं। हेमा भांगरूचिं शशांक मुकुटां सच्चम्प कस्त्रग्युताम् । हस्तैर्मुद्गरपाश वज्र दशनांः संविधूर्ती भूषणै ॥ व्यप्तिगीं बगलामुखी त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत् ।।

माँ का ध्यान करने के पश्चात् माँ के अग्रांकित मंत्र की प्रतिदिन ग्यारह मालाओं का जप करना होता है। जप अगर हरिद्रा माला के ऊपर अथवा लघु पंचमुखी रुद्राक्ष माला के ऊपर किया जाये तो शीघ्र प्रभावी होता है। माँ बगला का यह छत्तीस अक्षरों का मंत्र है। इस मंत्र में अद्भुत शक्ति सन्निहित है। मंत्र में ह्रीं बीज मंत्र माँ की असीम शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जो समस्त ऐश्वर्य, सुख-सम्पदा, ऋद्धि-सिद्धि को प्रदान करने वाला है। यद्यपि बगला मंत्र का पूर्ण पुरश्चरण सवा लाख या पांच लाख मंत्रजप से पूर्ण होता है, किन्तु साधारण साधकों का कार्य छत्तीस हजार मंत्रजप से ही पूर्ण हो जाता है। मंत्र इस प्रकार है-

ॐ ह्रीं बगलामुखि, सर्वदुष्टानां वाचं मुखं परं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ फट् ।

बगला का मंत्रजाप सम्पन्न हो जाने के पश्चात् मिट्टी की हांडी में निरन्तर लौबान, पीली सरसों, श्वेत चंदन, जवा कुसुम, हल्दी, धूप लक्कड़ आदि के मिश्रण से आहुति देते हुये इक्कीस बार बगलामुखी के आगे लिखे गये कवच का पाठ भी कर लेना चाहिये। अपनी सामर्थ्य अनुसार कवच पाठ की आवृत्ति ग्यारह या सात अथवा तीन बार रखी जा सकती है। माँ का यह कवच सभी तरह के अभिचार कर्मों, तांत्रोक्त क्रियाओं एवं अन्य तरह की आपदाओं से रक्षा प्रदान करने वाला है। अगर माँ के इस रक्षा कवच का नियमित रूप से पूर्ण भक्तिभाव से पाठ किया जाये तो उससे ही भक्त साधक अनेक परेशानियों से बचे रहते हैं। ऐसे साधकों पर किसी भी तरह के तांत्रोक्त प्रयोग सफल नहीं हो पाते। इनके सामने शत्रु भी अपने को अहसाय महसूस करते रहते हैं। अग्नि को आहुति अर्पित करते समय समिधा में थोड़ा सा गाय का घी भी मिला लेना चाहिये।

माँ के अनुष्ठान का पाठ करते समय एक विशेष बात का ध्यान रखना चाहिये कि कवच पाठ से पूर्व एवं कवच पाठ पूर्ण होने के पश्चात् 21-21 बार माँ को उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुये अग्नि में आहुतियां प्रदान करनी चाहिये। इस कार्य से माँ बगला शीघ्र प्रसन्न होती ही है, साथ ही भैरव जैसे अन्य देव भी कृपा प्रदान करने लगते हैं।

माँ बगला के कवच पाठ का विधान निम्न प्रकार है- सबसे पहले निम्न मंत्र का पाठ करते हुये माँ को प्रणाम करें-

श्रुत्वा च बगला पूजां स्तोत्रं चापि महश्वर।

इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ।। वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाशुभ विनाशकम्। शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दुःख नाशनम् ॥ यह कवच भैरव द्वारा पूरित किया गया है, अतः निम्न मंत्र का पाठ करते हुये एक बार पुनः माँ का विनियोग कर लेना चाहिये। विनियोग पहले दिया गया है।

तंत्र के दिव्य प्रयोग

अथ बगलामुखी कवचं प्रारभ्यते

श्रुत्वा च बगला पूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर । इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो।। वैरिनाशकर दिव्यं सर्वा ऽशुभविनाशकम्। शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दुःख-नाशनम् ।।
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श्री भैरव उवाच

कवचं श्रृणु वक्ष्यामि भैरवि ! प्राणवल्लभम्। पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ।।

विनियोग

ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषिः अनुष्टुप्छन्दः श्रीबगलामुखी देवता। ह्रीं बीजम्। ऐं कीलकम्। पुरुषार्थचतुष्टयसिद्धये जपे विनियोगः।।

अथ कवचम्

शिरो मे बगला पातु हृदयै काक्षरी ॐ ह्रीं ॐ में ललाटे च बंगला वैरिनाशिनी ।। गदाहस्ता सदा पातु मुखखं मे वैरि जिह्वाधरा पातु कण्ठं मे उदरं नाभिदेशं च पातु नित्यं परात्परा । परात्परतरा पातु मम गुह्यं हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती विवादे विषमे घोरे संग्रामे पीताम्बरधरा पातु सर्वांगं श्रीविद्या समयं पातु पातु पुत्रीं सुतञ्चैव परा। मोक्षदायिनी। बगलामुखी ।। सुरेश्वरी ।। परिपातु मे । रिपुसंकटे ।। शिवनर्त की। मातंगी पूरिता शिवा ।। कलत्रं कालिका मम । शूलिनी सदा ।। सन्मुखो दितम् । प्रदायकम् ।। पूजनाद्वांछितं लभेत् । बगलामुखीम् ।। प्राप्य सादराः। मोहने तथा ।। पातु नित्यं भ्रातरं मे पितरं रंध्रं हि बगलादेव्याः कवचं वै देयममुख्याय सर्वसिद्धि न पठनाद्धारणादस्य इदं कवचंमज्ञात्वा यो जपेद् पिबन्ति शोणितं तस्य योगिन्यः वश्ये चाकर्षणे चैव मारणे महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु यः। तस्य सर्वार्थसिद्धिः। स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ।।
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बगलामुखी साधना 

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