दक्षिणाव्रती :- आज दिल किया की इस शब्द की महत्वता को कहने का .अक्सर यह शब्द सुनने में तो आता है कई ग्रंथों में में इसका उल्लेख भी मिलता है कई दक्षिणा व्रती वस्तुएं भी मिल जाती है लेकिन इस शब्द का तात्पर्य और व्याख्या क्या है यह शायद आज तक नहीं की गयी ..कम से कम मेने तो नहीं पढ़ी . व्याख्या करने का प्रयास कर रहा हु अपने अनुभव के आधार पर .
सामान्य संसार में देखा जाए तो दक्षिण को दुत्कारा जाता है . कुछ भी उलट करना हो तो दक्षिण के लेकर चलते हैं .अक्सर पंडित लोगों के पास जाएँ यां वास्तु वाले तथाकतित विद्वानों से पूछें तो दक्षिण दिशा को एक भारी दिशा माना गया है अपना अपना ज्ञान है रोज़ी रोटी चल ही जाती है लोगों को बेवकूफ बनाने से . कमाई करने के धंधे बना लिए है इससे जायदा और कुछ नहीं .
दक्षिण दिशा कि महिमा का तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता .
जीवन का सोभाग्य मिले की हम दक्षिण को ही समझ लें .
जीवन में जो भी उलटे लोग मिलेंगे वो सब दक्षिणा व्रती ही होते है . क्यूंकि वह अलग होते है , उलटे होते हैं . लोग जीवन में सफलताएँ सोचते है छोटे छोटे कामो में ..घर है परिवार है , रोज़ रोज़ के तनाव कम हो जाएँ इसपर अपना पूरा जीवन लगा देते है .. पैसा चाहे जितना भी ले लो लेकिन प्रॉब्लम solve होनी चाहिए ... एक चक्र सा चलता है पूरे जीवन क्रम में सब क्रियाएं करते हुए आखिर में क्या मिलता है ????????? मौत .
दक्षिणा व्रती पहले से ही मौत को सोचते है फिर दिन भर का काम काज होता है ..क्यूंकि उलट होते हैं . इसी लिए महाकाल को दक्षिणा व्रती कह गया है .
दक्षिणाव्रती part 2:-
जो लोग साध्नायों से जुड़े है यां जो लोग आध्यात्मिकता से भी जुड़े है उन्होंने एक शब्द तो ज़रूर सुना होगा ' दक्षिणा व्रती शंख ' . इसकी जितनी महिमा और गुणगान की जाए उतनी ही कम है ..लेकिन क्या शंख जो बाजारों में मिलते है 2000 -2500 में क्या वो दक्षिणा व्रती होते हैं ?????????
दक्षिणा व्रती शंख की शुरुआत ही 10 -11 लाख से होती है और 25 लाख तक जाती है और पूरे भारत में शायद दो या तीन होंगे . मेरे जीवन का सौभाग्य है की मैं इसके दर्शन कर पाया .
लोगों को पैसा कमान होता है उत्तर दिशा में बहुत ध्यान देते है ..किसी का कुछ नहीं बनता ..बताने वाले पंडित भी आखिर में वेसे ही मरते हैं और उन पर चलने वाले भी वेसे ही दुनिया से चले जाते है किसी का कुछ नहीं बनता .
दक्षिणा व्रती लोग उलटे होते हैं , जो कुछ भी करना अलग हट कर , दुनिया से उल्टा हो कर करना
उल्टा होने को ही दक्षिणा व्रती कहा जाता है ..और जीवन में जिन जिन लोगों ने भी सफलताएं प्राप्त की हैं उन्होंने कुछ उल्टा ही करने की सोची तभी सफलता मिली .
रावण दक्षिणा व्रती था . दक्षिण को साधा ..और सोने की लंका बना दी . आज भी scientist इस खोज में लगे हुए है की लंका का आकार केसा था .. अगर रावण पूरी लंका को सोने की बना सकता था तो हम क्यूँ सक्षम नहीं हैं .. नहीं हो सकते , होने के लिए दक्षिण की महत्वता को समझना होगा.
हमने दक्षिण को नकार दिया ..शमशान घाट दक्षिण दिशा में बनाने शुरू कर दिए और जीवन को शमशानवत बना दिया . रावण ने दक्षिण का उपयोग किया , लंका को दक्शिनाव्रती बनाया और पूरी लंका ही सोने की बना दी .
दक्षिण की तो महिमा ही अलग है इसी लिए कीमती है .
दक्षिणा व्रती गुरु अगर मिल जाएँ तो समझे जीवन का सौभाग्य मिल गया,लेकिन ऐसे गुरु मिलते नहीं है कई हजारों वर्ष में कोई एक आता है जो दक्शिनाव्रती हो .. परम पूज्य गुरु देव निखिलेश्वरानंद भी ऐसे ही थे ..आज भी है अपने हर शिष्य के अंदर ज्ञान देते हुए, चेतना देते हुए .
दक्षिण का महत्व कहने का मन हुआ था जो समझा आपके सामने रखा
जय गुरुदेव