अनंत देवी देवता हैं, अनंत उपासना पद्धति है, कहाँ कहाँ जाकर सिर झुकाओगे, किन किन दरवाज़ों पर जाकर नाक रगडोगे, जीवन के दिन तो थोड़े से ही हैं, गिनती के हैं. वे तो ऐसे ही समाप्त हो जायेंगे, फिर क्या मिलेगा? जीवन यूँ ही भटकते हुए मंदिरों में , तीर्थों में, साधू सन्यासियों के पास समाप्त हो जायेगा. यदि तुम्हें सदगुरु मिल गये हैं, तो सब कुछ छोड़कर उनके चरण क्यूँ नहीं पकड़ लेते.......
पूर्णां परेवां मदवं गुरुर्वे चैतन्यं रूपं धारं धरेशंगुरुर्वे सनतां दीर्घ मदैव् तुल्यम् गुरूवै प्रणम्यम् गुरूवै प्रणम्यम् ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।
त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥
अचिन्त्य रूपं अविकल्प रूपं ब्रम्हा स्वरूपं विष्णु स्वरूपं रुद्रात्वेमेव परतं परब्रह्म रूपं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं|
|त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।
त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥
हे आदिदेवं प्रभवं परेशां अविचिंत्य रूपं हृधयस्त रूपंब्रहमांड रूपं परमं प्रणितं प्रमेयं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।
त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥
हृदयं त्वमेवं प्राणं त्वमेवं देवं त्वमेवं ज्ञानं त्वमेवं चैतन्य रूपं मपरं तहिदेव नित्यं गुरूवै प्रणम्यं गुरूवै प्रणम्यं||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥अनादी अकल्पमयवां पूर्ण नित्यंअजन्मा अगोचर अदिर्वां अदेयमअदेवांसरी पूर्ण मदैव् रूपं गुरुर्वे प्रणम्यं गुरुर्वे प्रणम्यं ||त्वमेव माता च पिता त्वमेव ।त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव ।त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥
मैं तुम्हे इसी जीवन मैं ब्रह्मत्व तक पंहुचा दूंगा , यह मेरी गारंटी है , पर गारंटी तब हो सकती है जब तुम अपने आप को मिटा सको , जब तुम अपने आप को पूर्णता से समाप्त कर सको ...परमपूज्य डा.नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलश्वेरानंद जी )