POWER OF TANTRIK SADHANA
तंत्र क्या है, तंत्र विज्ञान के फायदे, What is Tantra in hindi - तंत्र को ज्यादातर लोग या तो अंधविश्वास मानकर नकार देते हैं, या फिर कोई डरावनी चीज़ मानकर उससे दूर रहने की सलाह देते हैं। लेकिन यह एक विज|्ञान है, जीवन की प्रत्येक क्रिया तन्त्रोक्त क्रिया है॰यह प्रकृति,यह तारा मण्डल,मनुष्य का संबंध,चरित्र,विचार,भावनाये सब कुछ तो तंत्र से ही चल रहा है;जिसे हम जीवन तंत्र कहेते है॰जीवन मे कोई घटना आपको सूचना देकर नहीं आता है,क्योके सामान्य व्यक्ति मे इतना अधिक सामर्थ्य नहीं होता है के वह काल के गति को पहेचान सके,भविष्य का उसको ज्ञान हो,समय चक्र उसके अधीन हो ये बाते संभव ही नहीं,इसलिये हमे तंत्र की शक्ति को समजना आवश्यक है यही इस ब्लॉग का उद्देश्य है.MTYV Sadhna Kendra
गुलामी हो तो सद्गुरु की gulami ho to sadgurudev ki
Friday 12th of June 2015 07:24:29 AM
बहुत-से ऐसे लोग हैं जो जमाने भर मे ये कहते फिरते हैं कि- "मैं गुरूदेव को प्यार करता हूँ, मैं गुरूदेव को प्यार करता हूँ" ! पर असली मज़ा तो तब और आये जब गुरूदेव आकर खुद कहे कि- "मैं तुझसे प्यार करता हूँ" ! गुलामी हो तो सद्गुरु की ________________________ ग़ुलामी कई प...
शंख का स्वास्थ्य,धार्मिक में महत्व shankh ka health and dhramink mahatav
Friday 12th of June 2015 07:08:21 AM
"हमारी सामाजिक , आर्थिक, धार्मिक और आध्यात्म में निरंतर उन्नति के लिए आइये जाने शंख का स्वास्थय में, धर्म में, ज्योतिष में उपयोग ~ "शंख का नाम लेते ही मन में पूजा - और भक्ति की भावना आ जाती है ...... ! "शंख का स्वास्थ्य में महत्व : ~~ १ : ~ शंख की आकृति और पृथ्वी की संरचना समान ...
सन्यास क्या है ? एक मानसिक भाव है
Friday 12th of June 2015 07:03:24 AM
सन्यास क्या है? सन्यास लेने या देने की चीज नहीं है| यह एक मानसिक भाव है, जिसके प्रति आकर्षण परमात्मा की कृपा से ही प्राप्त होता है| दीक्षा, आचरण के नियम, वेशभूषा, विधि आदि सम्प्रदाय या आश्रम विशेष या गुरु विशेष के होते है; पर संन्यास में इसकी कोई उपयोगिता नहीं है| जब किस...
सदगुरू-महिमा Gurumahima by writers
Friday 12th of June 2015 06:55:56 AM
सदगुरू-महिमा गुरु बिनु भव निधि तरै न कोई | जौं बरंचि संकर सम होई || -संत तुलसीदासजी हरिहर आदिक जगत में पूज्यदेव जो कोय | सदगुरू की पूजा किये सबकी पूजा होय || -निश्चलदासजी महाराज सहजो कारज संसार को गुरू बिन होत नाँही | हरि तो गुरू बिन क्या मिले, समझ ले मन माँही ||...
क्या है जीवन का असली लक्ष्य what is life aim
Friday 12th of June 2015 06:50:46 AM
क्या है जीवन का असली लक्ष्य जीवन का एक मात्र लक्ष्य सत्य को उपलब्ध हो जाना है… आत्मा को जान लेना है। धन पा जाना, नाम पा जाना, बड़ा आदमी बन जाना… ये जीवन के लक्ष्य नहीं हैं। इनका नाता तो शरीर से है और शरीर छूटने के साथ ही इन सबको छूट जाना है। सत्य को उपलब्ध होना कठिन नहीं है। ...
चेतना की सात अवस्थाएँ chetna ki saat avasthaye
Friday 12th of June 2015 06:19:38 AM
चेतना की सात अवस्थाएँ 1. जागृति ---- ठीक-ठीक वर्तमान में रहना ही चेतना की जागृत अवस्था है। जब हम भविष्य की कोई योजना बना रहे होते हैं, तो हम कल्पना-लोक में होते हैं। कल्पना का यह लोक यथार्थ नहीं होता। यह एक प्रकार का स्वप्न-लोक ही है। जब हम अतीत की किसी यद् में खोए हुए रहते ह...
MAI TO TUMHARA HI HU बहुत सुन्दर गुरू महिमा गुरु बिन कौन सम्हारे । को भव सागर पार उतारे ॥
Tuesday 9th of June 2015 01:24:08 PM
mai to tumhara hi hu,,tumhari dharkanon ka spandan hu,,,tumhare hriday ki hi to suvaas hu,,,tumhare ansuwon ki hi bhasha hu,,,fir mujhe dhundne ki zarurat hi kahan padi hai,,, mai budh k bad ek vishesh sandesh lekar tum logon k bich upasthit hua hu,,ek vishesh chetna jagrat karne k liye paida hua hu,,,, yah char din ki zindagi zindagi na rhi...umr bhar k liye rog hui jati hai..zindagi yon to hamesha se pareshan thi..ab to har saans pareshan hui jati hai ... पीर भी तू मेरा संत भी तू पंडित तू मेरा महंत भी तू अब और क्या कहूँ सतगुरु मेरा आ...
ईश्वर ने तुम्हारा जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए किया है
Tuesday 9th of June 2015 08:11:44 AM
ईश्वर ने तुम्हारा जन्म एक विशेष उद्देश्य के लिए किया है क्योंकि प्रभु की यह विशेष स्थिति है की वह एक घास का तिनका भी व्यर्थ पैदा नहीं करता ...और तुम्हे भी यदि ईश्वर ने जन्म दिया है तो जरूर इसके पीछे कोई हेतु है ,कोई कारण है ,कोई चिंतन है | मैं तो तुम्हे आवाज दे रहा हूँ ,युगों...
तुम्हारे लिए तो मैं हर क्षण उपस्थित हूँ.I am present for you every moment.
Tuesday 9th of June 2015 08:05:14 AM
गुरु सेवा गुरु सेवा से बड़ी संसार में कोई साधना नहीं. इसके आगे तो सभी मंत्र, सब साधनाये, सब भक्ति, सब क्रियाये व्यर्थ हैं. गुरु सेवा के द्वारा शिष्य क्षण मात्र में वह सब प्राप्त कर लेता हैं जो की हजारों वर्ष क्या कई जन्मों की तपस्या के बाद भी संभव नहीं. gurudev dr. narayan dutt shrimaliji ...
कर्म-फ़ल में आसक्त हुए बिना कर्म करते रहना चाहिये
Tuesday 9th of June 2015 07:13:42 AM
कर्म-फ़ल में आसक्त हुए बिना साधक को अपना कर्तव्य समझ कर कर्म करते रहना चाहिये, क्योंकि अनासक्त भाव से निरन्तर कर्तव्य-कर्म करने से साधक को एक दिन सदगुरुदेव की प्रप्ति हो जाती है।" "कर्मयोगी" साधक को सबसे पहले कर्तव्य-कर्म को करना चाहिये, कर्तव्य-कर्म से मुक्त होकर ही कि...